वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-अफगानिस्तान में चीन के पांव पसरने से इस्लामी चरमपंथी गुट नाराज हुए हैं। आतंकवादी गुट आईएसआईएस-के और उससे जुड़े गुटों ने चीन के खिलाफ जुबानी हमले तेज कर दिए हैं...
अफगानिस्तान में चीन का सिरदर्द बढ़ता जा रहा है। इस्लामी उग्रवादी यहां लगातार चीन की खनन परियोजनाओं को निशाना बनाने की धमकी दे रहे हैं। इससे इन परियोजनाओं का भविष्य अनिश्चित हो गया है। इसी महीने के आरंभ में चीन की कंपनी शिनजियांग सेंट्रल एशिया पेट्रोलियम एंड गैस (सीएपीईआईसी) ने तेल की खोज के लिए अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ 25 वर्ष का एक समझौता किया। यह खोज अफगानिस्तान के उत्तर-पश्चिम में स्थित अमू नदी तेल क्षेत्र में की जाएगी। बताया गया है कि करार के पहले वर्ष में ये कंपनी 15 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी। तीन साल में उसका 54 करोड़ डॉलर निवेश करने की योजना है।
तालिबान ने अगस्त 2021 में काबुल की सत्ता पर कब्जा किया था। उसके बाद किसी विदेशी कंपनी से अफगानिस्तान का हुआ यह पहला करार है। कुछ खबरों में बताया गया है कि चीन मेस अयनक इलाके में तांबे के खनन के लिए समझौता करने की कोशिश में भी है। मेस अयनक काबुल के उत्तर पूर्वी में राजधानी से सिर्फ 40 किलोमीटर दूर है।
लेकिन खबर है कि अफगानिस्तान में चीन के पांव पसरने से इस्लामी चरमपंथी गुट नाराज हुए हैं। आतंकवादी गुट आईएसआईएस-के और उससे जुड़े गुटों ने चीन के खिलाफ जुबानी हमले तेज कर दिए हैं। पिछले वर्ष ही आईएसआईएस-के ने अपने मुखपत्र में चीन के खिलाफ एक लंबा संपादकीय छापा था। खोरासान नाम की इस पत्रिका में इस संपादकीय को ‘चीनी साम्राज्यवाद के दिवा-स्वप्न’ हेडिंग के तहत छापा गया था। उसमें चेतावनी दी गई थी कि अगर मुस्लिम इलाकों में चीन ने संसाधनों की खोज की, तो आईएसआईएस-के से उसका सीधा टकराव होगा। संपादकीय में चीन के शिनजियांग प्रांत में मुसलमानों से चीन के कथित खराब व्यवहार को लेकर भी चेतावनी दी गई थी।
विश्लेषकों के मुताबिक अगस्त 2021 में अमेरिकी फौज के वापस जाने के बाद से आईएसआईएस-के तालिबान से स्वतंत्र होकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। इसलिए चीनी हितों के खिलाफ उसकी चेतावनियों को गंभीरता से लिया गया है। पिछले दिसंबर में काबुल स्थित एक ऐसे होटल पर हमला हुआ था, जहां चीनी नागरिक अधिक संख्या में ठहरते हैं। आईएसआईएस-के ने उस हमले की जिम्मेदारी ली थी। उस घटना के बाद चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था- ‘हम अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार से हम अनुरोध करते हैं कि वह चीनी नागरिकों, संस्थानों और परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए मजबूत और संकल्पबद्ध कदम उठाए।’
आईएसआईएस-के के अलावा तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (टीआईपी) भी चीनी ठिकानों को निशाना बनाने की चेतावनी दे चुकी है। ये पार्टी भी शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के अधिकारों की वकालत करने का दावा करती है। बताया जाता है कि अफगानिस्तान के प्रांत बादाखशान में इस संगठन ने अपने अड्डे बना रखे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक टीआईपी का अभी भी तालिबान से संवाद बना हुआ है। इसलिए फिलहाल तालिबान उसे इस बात पर राजी करने में सफल हो गया है कि वह चीनी ठिकानों पर हमले ना करे।
सिंगापुर स्थित एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में रिसर्च फेलॉ अब्दुल बासित ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘ऐसा लगता है कि टीआईपी अपने को एक राजनीतिक आंदोलन बनाने की कोशिश में है। ऐसा संभवतः तालिबान पर पड़े चीन के दबाव के कारण हुआ है।’