वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति की 27 अक्तूबर की बैठक में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीनों विधेयकों के मसौदे पर मुहर नहीं लग सकी थी।
मौजूदा आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले तीन विधेयकों पर मंथन कर रही संसदीय समिति अपनी सोमवार को होने वाली बैठक में इनके मसौदे को स्वीकार कर सकती है। पूर्व में कुछ विपक्षी सदस्यों ने इन विधेयकों पर विस्तार से चर्चा के लिए और समय मांगा था।
नहीं लग सकी थी मसौदे पर मुहर
गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति की 27 अक्तूबर की बैठक में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीनों विधेयकों के मसौदे पर मुहर नहीं लग सकी थी। विपक्षी सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष बृज लाल से कहा था कि वह अपने कार्यकाल में तीन महीने का विस्तार मांगे और अल्पकालिक चुनावी लाभ के लिए इन विधेयकों के साथ खिलवाड़ बंद करें।
इस बीच, भाजपा सूत्रों ने कहा कि समिति व्यापक परामर्श प्रक्रिया में लगी है और तीन महीने की निर्धारित समयसीमा में इसे पूरा कर लेगी। सूत्रों ने कहा कि विपक्षी दलों के कुछ सदस्यों के विरोध के बावजूद समिति मसौदा रिपोर्ट को अपना सकती है। गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से जुड़े विधेयक लोकसभा में पेश किए थे।
औपनिवेशिक काल के तीन आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले तीन विधेयक बीते मानसून सत्र के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में पेश किए थे। इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता, द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम पेश किया गया है।
देश में अभियोजन प्रक्रिया की नींव हैं ये कानून
लोकसभा में पेश करने के बाद ये तीनों विधेयक संसद की समिति के पास जांच के लिए भेज दिए गए थे। संसद के अगले सत्र में इन विधेयकों पर सदन में चर्चा हो सकती है। जिन कानूनों को बदला जाएगा, वह भारत में अपराधों की अभियोजन प्रक्रिया की नींव हैं। इनमें से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) से तय होता है कि कौन सा कृत्य अपराध है और उसके लिए क्या सजा होनी चाहिए। वहीं गिरफ्तारी जांच और मुकदमा चलाने की प्रक्रिया दंड प्रक्रिया संहिता में लिखी हुई है। साथ ही केस के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा, यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम बताता है। सरकार का कहना है कि ये तीनों कानून देश में उपनिवेशवाद की विरासत हैं और इन्हें आज के हालात के अनुसार किया जा रहा है।