वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के सात जुलाई 2023 के उस आदेश को रद्द करते हुए कानूनी प्रावधानों की व्याख्या की, जिसमें पॉक्सो कानून के तहत आरोपी की जमानत रद्द कर दी गई थी, क्योंकि वकील ने अपील पर बहस की तैयारी के लिए चार सप्ताह के स्थगन की मांग की थी।.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट वकील की चूक पर और नोटिस जारी किए बिना अपील के निलंबन पर रिहा किसी आरोपी की जमानत रद्द नहीं कर सकता है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में सीआरपीसी की धारा 389 की उप-धारा 1 के तहत किसी आरोपी को दी गई जमानत को आरोपी को सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना रद्द नहीं किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के सात जुलाई 2023 के उस आदेश को रद्द करते हुए कानूनी प्रावधानों की व्याख्या की, जिसमें पॉक्सो कानून के तहत आरोपी की जमानत रद्द कर दी गई थी, क्योंकि वकील ने अपील पर बहस की तैयारी के लिए चार सप्ताह के स्थगन की मांग की थी। पीठ ने कहा, जेल में बंद अपीलकर्ता-अभियुक्त की सजा को निलंबित करते हुए अपीलीय अदालत को अपील के अंतिम निपटान तक आरोपी को जमानत पर रिहा करना होगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि धारा 389 की उप-धारा 1 का दूसरा प्रावधान लोक अभियोजक को उप-धारा 1 के तहत दी गई जमानत को रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने की अनुमति देता है।
अपने ही पुराने फैसले को अपनाने की दी सलाह
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में, ‘बानी सिंह बनाम यूपी सरकार’ (1996) के मामले में इस न्यायालय के निर्णय में सुझाए गई बातों में से एक को हाईकोर्ट को हमेशा अपनाना चाहिए। जब अपीलकर्ता का वकील अनुचित आधार पर अपील पर बहस करने से इन्कार करता है तो हाईकोर्ट के पास अपीलकर्ता के लिए एक वकील नियुक्त करने का विवेकाधिकार है।
आरोपी को नोटिस जारी कर सकती है अदालत
पीठ ने कहा, अदालत स्वत: संज्ञान लेते हुए एक नोटिस भी जारी कर सकती है, जिसमें आरोपी से पूछा जा सकता है कि जमानत क्यों रद्द नहीं की जानी चाहिए? मौजूदा मामले में पीठ ने कहा कि दुर्भाग्य से अपीलकर्ता-अभियुक्त को जमानत रद्द करने के मुद्दे पर सुनवाई का अवसर दिए बिना हाईकोर्ट ने सीधे उसे दी जमानत रद्द कर दी। हाईकोर्ट की ओर से इस तरह के दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। खासकर तब जब हाईकोर्ट हमेशा उस स्थिति से निपट सकता है जब अपील की अंतिम सुनवाई के समय अनुचित आधार पर आरोपी के वकील स्थगन मांग करता है।