वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-पार्टी के भीतर विरोध के चलते ही उन्हें साल 1996 में करारी हार का सामना करना पड़ा था, जब उनका गठबंधन एलडीएफ तो राज्य में चुनाव जीत गया था लेकिन अच्युतानंदन को उनकी विधानसभा मरारीकुलम में हार का सामना करना पड़ा था।
मार्क्सवादी नेता और सीपीआईएम के सबसे चर्चित चेहरों में से एक वीएस अच्युतानंदन आज 100 साल के हो गए हैं। अच्युतानंदन जीवनभर अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़े। एक दर्जी के सहायक के तौर पर अपनी यात्रा शुरू करने वाले वीएस अच्युतानंदन केरल की सत्ता के शीर्ष पद तक पहुंचे और कई साल तक विपक्ष के नेता रहे।
आम जनता के नेता
अच्युतानंदन की छवि एक ईमानदार और आम जन के हितों से जुड़े मुद्दों के लिए लड़ने वाले नेता की है। अच्युतानंदन पर्यावरण, महिला अधिकारों जैसे मुद्दों पर मुखर रहे और अपने समय के सबसे लोकप्रिय मार्क्सवादी नेता बने। अच्युतानंदन ने विपक्ष के नेता के पद पर रहते हुए केरल में भू-माफिया और रियल एस्टेट माफिया के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसके चलते समाज के हर वर्ग में उनकी लोकप्रियता बढ़ी।
पार्टी के भीतर भी लड़ी लंबी लड़ाई
अच्युतानंदन को ना सिर्फ विपक्ष बल्कि पार्टी के भीतर भी लड़ाई लड़नी पड़ी। केरल के मौजूदा सीएम पिनाराई विजयन भी अच्युतानंदन के विरोधी रहे। पार्टी के भीतर विरोध के चलते ही उन्हें साल 1996 में करारी हार का सामना करना पड़ा था, जब उनका गठबंधन एलडीएफ तो राज्य में चुनाव जीत गया था लेकिन अच्युतानंदन को उनकी विधानसभा मरारीकुलम में हार का सामना करना पड़ा था। इस हार का असर इतना बड़ा था कि माना जाने लगा था कि अच्युतानंदन की राजनीतिक पारी खत्म हो गई है लेकिन अच्युतानंदन फिर से मजबूत होकर उभरे और ज्यादा लोकप्रिय नेता बने। वीएस अच्युतानंदन अपनी भाषण शैली के लिए काफी पसंद किए जाते थे।
केरल के सीएम रहे
अच्युतानंदन की लोकप्रियता के चलते ही पार्टी ने साल 2006 और 2011 में भी उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिया। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के विरोध और पार्टी में दरकिनार करने की कोशिशों के बावजूद अच्युतानंदन साल 2006 से 2011 तक राज्य के सीएम रहे और सफलतापूर्वक एलडीएफ गठबंधन का नेतृत्व किया। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, पारदर्शिता बढ़ाने और कई आम जन के फायदे के लिए सामाजिक योजनाएं लागू करने के लिए उनका कार्यकाल याद किया जाता है। केरल की जनता में अच्युतानंदन की लोकप्रियता के स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने उन्हीं के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ा था। हालांकि गठबंधन की जीत के बाद अच्युतानंदन को दरकिनार कर पिनाराई विजयन को सीएम चुन लिया गया था।
गरीब परिवार में जन्में
पार्टी की आधिकारिक लाइन से हटकर बोलने के लिए उन्हें सीपीआईएम के सर्वोच्च निकाय पोलित ब्यूरो से भी हटा दिया गया था। अच्युतानंदन उन नेताओं में से एक हैं, जो सीपीआई की बंटवारे से पहले की परिषद से सीपीआईएम में शामिल हुए थे। एक साधारण परिवार से आने वाले अच्युतानंदन का जन्म 20 अक्तूबर 1923 को केरल के अलपुझा में हुआ था। गरीबी के चलते वह ज्यादा नहीं पढ़ पाए और प्राइमरी शिक्षा पाने के बाद ही कपड़े की दुकान में काम करने लगे। बाद में वह कॉयर फैक्ट्री में बतौर मजदूर काम करने लगे। यही पर वह वामपंथ से प्रभावित हुए और मार्क्सवादी दिग्गज नेता पी कृष्णा पिल्लई के संपर्क में आए और फिर साल 1938 में ट्रेड यूनियन वर्कर बन गए और फिर साल 1940 में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।
अच्युतानंदन इएम शंकरन नंबूरीपाद और एके गोपालन और ईके नयानार जैसे नेताओं के बाद देश के सबसे लोकप्रिय वामपंथी नेताओं में से एक हैं। अच्युतानंदन साल 1967, 1970, 1991, 2001, 2006 और 2011 में केरल विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। साल 1992, 1996, 2001, 2006, 2011 और 2016 में वह विपक्ष के नेता रहे। अब 100 साल के होने के बावजूद वह केरल की राजनीति की महत्वपूर्ण शखसियत बने हुए हैं।