वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-आईसीएमआर के अनुसार, 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर नवजात मृत्यु दर 26 थी, जो घटकर 20 रह गई है। बीते नौ साल में राष्ट्रीय स्तर पर सुधार हुआ है, लेकिन 430 जिलों में अभी भी सुधार होना बाकी है।
देश के 59 फीसदी जिलों में नवजात मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। इसकी रोकथाम के लिए नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अध्ययन करने का फैसला लिया है। भारत में एक हजार नवजात शिशुओं पर करीब 20 की मौत हो रही है। इनमें 26 फीसदी मौतें जन्म के 24 घंटे के भीतर हो रही हैं, लेकिन कई राज्यों में मौत का यह आंकड़ा काफी अधिक है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचआईएमएस) के साल 2019-20 के आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में यह सबसे अधिक 63-63 फीसदी है।
मौत के प्रमुख कारण
चिकित्सा अध्ययनों से पता चलता है कि देश में हर साल नवजात शिशुओं की मौत कई कारणों से हो रही है। इनमें प्रमुख कारण समय से पहले जन्म और जन्म के समय कम वजन (46.1 फीसदी), जन्म के समय श्वासावरोध और जन्म आघात (13.5 फीसदी), नवजात निमोनिया (11.3 फीसदी), गैर संचारी रोग (8.4 फीसदी) और सेप्सिस (5.7 फीसदी) हैं।
देश में सुधरे हालात
आईसीएमआर के अनुसार, 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर नवजात मृत्यु दर 26 थी, जो घटकर 20 रह गई है। बीते नौ साल में राष्ट्रीय स्तर पर सुधार हुआ है, लेकिन 430 जिलों में अभी भी सुधार होना बाकी है। जिन जिलों में स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक हैं उनमें उत्तर प्रदेश के 18, मध्य प्रदेश के 13, ओडिशा के छह, राजस्थान के पांच, छत्तीसगढ़ और गुजरात के चार-चार और महाराष्ट्र के तीन जिले शामिल हैं। अगर 2030 तक मृत्यु दर को एक अंक यानी प्रति एक हजार शिशुओं के जन्म पर 10 से कम मौतें लानी हैं तो इन जिलों में बहुत सुधार करने होंगे।
हर साल पांच लाख की मौत
नई दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के प्रो. सुमन कुमार बताते हैं कि हर साल देश में करीब पांच लाख नवजात शिशुओं की मौत उनके जन्म के 28 दिन के भीतर हो रही है। डब्ल्यूएचओ की नवजात शिशु कार्य योजना का लक्ष्य 2030 तक नवजात शिशु मृत्यु दर को 12 तक लाना है।