वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-सियासी गलियारों में चर्चा इसी बात की हो रही है कि मायावती ने गठबंधन में जाकर चुनाव लड़ने से तो इनकार कर दिया है, लेकिन उनका यह इनकार सिर्फ विधानसभा के चुनावों तक है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जैसे ही विधानसभा के चुनाव समाप्त होंगे, मायावती अपने सियासी पत्ते एक बार फिर से खोलना शुरू कर देंगी...
दिल्ली की सत्ता का एक बड़ा रास्ता उत्तर प्रदेश के गलियारों से होकर गुजरता है। यही वजह है कि अब यूपी के सियासी गलियारों में तमाम तरह की रणनीति बनाई जाने लगी हैं। तमाम राजनीतिक दलों के बीच में बसपा ने भी राजनीतिक बिसात पर अपनी सियासी गोटियां फिट करनी शुरू कर दी हैं। कहने को तो मायावती ने सिरे से किसी भी राजनीतिक दल से सियासी गठबंधन को इनकार कर दिया है। लेकिन पार्टी से जुड़े सूत्रों का मानना है कि मायावती की झोली में लोकसभा चुनावों को लेकर दो तरह के महत्वपूर्ण प्लान तैयार हैं। पहले प्लान में लोकसभा चुनावों से पहले वह यूपी में एक विशेष जाति वर्ग में अपनी पकड़ बनाने को तैयार बैठे सियासी दल के साथ गठबंधन कर सकती हैं, जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पहले पायदान पर खड़ी नजर आ रही है। जबकि दूसरा प्लान उनका पूरी तरह खुला है कि विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद वह गठबंधन के पत्ते खोलेंगी, जिसमें सरकार को समर्थन देने तक की बात कही जा रही है।
तो क्या ओवैसी के साथ होगा बसपा का गठबंधन
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन को लेकर इंकार कर दिया। सियासी गलियारों में चर्चा इसी बात की हो रही है कि मायावती ने गठबंधन में जाकर चुनाव लड़ने से तो इनकार कर दिया है, लेकिन उनका यह इनकार सिर्फ विधानसभा के चुनावों तक है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जैसे ही विधानसभा के चुनाव समाप्त होंगे, मायावती अपने सियासी पत्ते एक बार फिर से खोलना शुरू कर देंगी। उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की हो रही है कि लोकसभा चुनावों से पहले मायावती और असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर गठबंधन में जा सकते हैं। हालांकि इस गठबंधन को लेकर बहुजन समाज पार्टी से जुड़े किसी भी नेता ने खुलकर तो कुछ नहीं कहा लेकिन चर्चा इस बात की जरूर है कि समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में बड़े स्तर पर सेंधमारी करके गठबंधन को मजबूत बना सकती हैं।
यूपी में सीटों की सियासत पर फंस रहा पेंच
हालांकि किसी भी तरह की बातचीत से पहले बहुजन समाज पार्टी और ओवैसी की पार्टी की ओर से चुनावी सीटों को लेकर के कई तरह के पेंच फंसते हुए नजर आ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी ओवैसी को चार से पांच सीटें देने पर राजी हो सकती है। इसको लेकर पार्टी के भीतर कुछ अंदरूनी चर्चाएं भी हुई हैं। लेकिन फिलहाल कहा यही जा रहा है कि ओवैसी की पार्टी अगर गठबंधन में जाती है, तो वह इससे ज्यादा सीटों की दावेदारी करेगी। क्योंकि मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर ओवैसी को बहुजन समाज पार्टी के माध्यम से मजबूत पैठ बन सकती है। जबकि बहुजन समाज पार्टी मुस्लिमों के बिखरे हुए वोट पर कुछ हद तक अपने साथ और मजबूती से जोड़ भी सकेगी।
यह भी उठ रहे हैं सियासत में सवाल
हालांकि उत्तर प्रदेश में मायावती और ओवैसी के बीच होने वाले गठबंधन के सवाल को ही सियासी जानकार सही फैसला नहीं मानते हैं। राजनीतिक विश्लेषक विष्णु एम कुमार कहते हैं कि मायावती और ओवैसी के बीच होने वाले गठबंधन की बात फिलहाल उनको समझ नहीं आ रही है कि ऐसा कोई गठबंधन हो भी सकता है। वह कहते हैं कि मायावती असदुद्दीन ओवैसी के साथ समझौता क्यों करेंगी वह भी तब जब वह खुद मुसलमान वोटों पर सीधे तौर पर अपनी मजबूत पकड़ बनाना चाहती हैं। विष्णु कहते हैं कि यह तो जानबूझकर अपने उस जनाधार को खत्म करने जैसा ही होगा जिसे आप अपने साथ जोड़ना चाहते हैं। और फिर ऐसा गठबंधन करके मायावती ओवैसी को अपनी मजबूत पकड़ वाले वोट बैंक को क्यों दे देंगी, जिसमे उनको लंबे समय तक कोई भला नहीं होने वाला। उनका मानना है कि ओवैसी अगर मायावती के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो उसमें मायावती को फायदे की जगह नुकसान ज्यादा होगा। क्योंकि गठबंधन में मायावती का दलित वोट ओवैसी के हिस्से में जा सकता है और मुसलमान वोट जो मायावती को पहले से मिल रहा है वो ओवैसी के साथ आने या न आने से कम ज्यादा नहीं होने वाला। ऐसे में इस गठबंधन कि फिलहाल संभावना तो नजर नहीं आ रही है। लेकिन वह कहते हैं कि सियासत में किसी भी परिस्थितियों में कुछ भी हो सकता है।
चुनाव के बाद मायावती खोलेंगी सियासी पत्ते
राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला का कहना है कि मायावती जिस तरीके से दलितों और मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ कर बड़ी सियासी चाल चल रही हैं, उससे तो यही लगता है कि यह चार राज्य उनके लिए सियासी प्रयोग की जमीन बनेगी। जीडी शुक्ला कहते हैं कि मायावती ने जो भी फॉर्मूला तय किया है, वह बहुत ही सोच समझकर और अपनी पार्टी को दोबारा जिंदा करने और मजबूत हैसियत में खड़ा करने के लिहाज से ही तय किया है। क्योंकि बीते कुछ चुनावों में बसपा पार्टी का सियासी ग्राफ जिस तरीके से नीचे गिरा है, उससे फिलहाल पार्टी किसी भी तरीके के गठबंधन से बचना चाह रही है, लेकिन ओवैसी को साथ लाने की जो चर्चा चल रही है, उसमें मायावती ऐसा करके मुस्लिम वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी तो कर ही सकती है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस साल होने वाले राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावों में मायावती का वोट प्रतिशत जिस तरह से होगा, उसके आधार पर ही लोकसभा के चुनाव की रणनीति बनाई जाएगी। क्योंकि 2018 के इन चार राज्यों में हुए चुनावों में मायावती की पार्टी का वोट प्रतिशत एक से डेढ़ फीसदी के करीब ही रहा था। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते ह
ं कि उनकी पार्टी इस बार राज्यों में ज्यादा वोट प्रतिशत के साथ विधानसभा की सीटें भी जीतेगी। सियासी जानकारों का कहना है कि मायावती इस बार दलित और मुस्लिम के कॉन्बिनेशन को सियासत में मजबूती के साथ सभी राज्यों में उतार रही है।
मायावती लोकसभा चुनावों के लिए खेल रही हैं 'सेफ गेम'
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लोकसभा के चुनावों में मिले वोट प्रतिशत को आधार मानते हुए ही मायावती बहुत सेफ गेम खेल रहीं हैं। सियासी विश्लेषक जटाशंकर सिंह कहते हैं कि जिस तरीके से समाजवादी पार्टी इस बार के चुनाव में दलित, मुस्लिम और पिछड़ों के सियासी गठजो़ड़ के साथ राजनीतिक मैदान में आगे तो बढ़ रही हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की राजनीति में फिलहाल यह कहना कि सिर्फ समाजवादी पार्टी ही उनकी रहनुमाई करेगी, यह अब के दौर में थोड़ा कठिन दिख रहा है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में बसपा लगातार मुसलमानों पर भरोसा जताते हुए उनको टिकट भी दे रही है। बसपा इसी का पॉलिटिकल माइलेज उठाना चाह रही हैं। चूंकि बहुजन समाज पार्टी पूरी तरीके से समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहती हैं। इसलिए एक संभावना या जरूर बन रही है कि वह ओवैसी को अपने साथ लेकर समाजवादी पार्टी के गढ़ में बड़ी सेंध लगाए और गठबंधन में उन सीटों पर कब्जा करें।