Thursday June 26, 2025
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चंद्रमा पर सेफ लैंडिंग कठिन क्यों, चंद्रयान-3 यह काम कैसे करेगा

वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-चंद्रमा में पर्याप्त हवा नहीं है और बहुत अधिक धूल है। जब चंद्रमा या मंगल पर कोई अंतरिक्ष यान उतरता है, तो उसे धीमा करना पड़ता है ताकि उसके लक्ष्य (जिस स्थान पर लैंडिंग करानी हो) का गुरुत्वाकर्षण उसे अंदर खींच सके। 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग 14 जुलाई को करेगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। इससे पहले इसरो ने दो मिशनों- चंद्रयान -1 और चंद्रयान-2 को लांच किया था, लेकिन ये दोनों सतह पर लैंड नहीं हो सके थे। 

चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। इस बीच, जानना जरूरी है कि आखिर चंद्रयान-3 क्या है? चंद्रमा की सतह पर उतरना कठिन क्यों है?  चंद्रयान-2 की सुरक्षित लैंडिंग क्यों नहीं हो पाई थी? चंद्रयान-3 क्या काम करेगा? आइए जानते हैं...

चंद्रयान-3 है क्या? 

इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है। 

मिशन 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरेगा और अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा। इससे पहले बुधवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 युक्त एनकैप्सुलेटेड असेंबली को एलवीएम3 के साथ जोड़ा गया। यह मिशन भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बना देगा।

पहले दो मिशनों का क्या हुआ था?

इससे पहले 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया था। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला किसी भी देश का पहला अंतरिक्ष मिशन था। हालांकि, चंद्रयान-2 मिशन का विक्रम चंद्र लैंडर छह सितंबर 2019 को चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। लगभग तीन महीने बाद नासा ने इसका मलबा खोजा। इसके बावजूद, मिशन पूरी तरह से असफल नहीं हुआ। इसकी वजह थी कि मिशन का ऑर्बिटर घटक सुचारू रूप से काम करता रहा और ढेर सारे नए डेटा जुटाए जिससे चंद्रमा और उसके पर्यावरण के बारे में इसरो को नई जानकारियां मिलीं।

चंद्रयान-1 के विपरीत, चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की सतह पर अपने विक्रम मॉड्यूल को सॉफ्ट-लैंड करने की कोशिश की। इसके साथ ही चंद्रयान-2 ने और कई वैज्ञानिक शोध करने के लिए छह पहियों वाले प्रज्ञान रोवर को तैनात किया। उड़ान भरने पर चंद्रयान-1 का वजन 1380 किलोग्राम था, जबकि चंद्रयान-2 का वजन 3850 किलोग्राम था।

चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र मिशन था, जिसे 22 अक्टूबर 2008 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। 29 अगस्त 2009 तक यह 312 दिनों तक चालू रहा और 3,400 से अधिक चंद्र परिक्रमाएं पूरी कीं। लगभग एक साल तक तकनीकी कठिनाइयों से जूझने के बाद इससे संपर्क टूट गया। 

क्या इसरो के अलावा भी किसी का मिशन फेल हुआ है? 

इसी साल अप्रैल में जापान की कंपनी आईस्पेस ने हाकुतो-आर मिशन-1 नाम का उपग्रह लॉन्च किया था। हालांकि यह मिशन चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल नहीं रहा और यह हाल ही में तीसरा मामला है। इजरायली कंपनी स्पेसआईएल और भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो दोनों ने 2019 में प्रयास किए लेकिन चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग नहीं हो सकी। आखिरी सफल सॉफ्ट लैंडिंग उसी वर्ष चीन के चांग’4 लैंडर द्वारा की गई थी, जो चंद्रमा के दूर वाले हिस्से पर उतरने वाला पहला उपग्रह भी था। चीन के अलावा, रूस और अमेरिका चंद्रमा पर सुरक्षित रूप से वैज्ञानिक उपकरण पहुंचाने वाले एकमात्र देश हैं। 

चंद्रमा पर उतरना इतना कठिन क्यों है?

दरअसल, चंद्रमा में पर्याप्त हवा नहीं है और बहुत अधिक धूल है। जब चंद्रमा या मंगल पर कोई अंतरिक्ष यान उतरता है, तो उसे धीमा करना पड़ता है ताकि उसके लक्ष्य (जिस स्थान पर लैंडिंग करानी हो) का गुरुत्वाकर्षण उसे अंदर खींच सके। 

पृथ्वी और कुछ हद तक मंगल के साथ, सबसे बड़ी शुरुआती चुनौती ग्रह का वातावरण होती है। जब कोई वाहन अंतरिक्ष के निर्वात को छोड़कर गैस की एक बड़ी दीवार से टकराता है, तो टक्कर से बहुत अधिक ऊष्मा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसीलिए पृथ्वी पर लौटने वाले या मंगल ग्रह पर उतरने वाले अंतरिक्ष यान खुद को बचाने के लिए हीट शील्डिंग ले जाते हैं। लेकिन वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद वे खुद को सावधानीपूर्वक धीमा करने के लिए पैराशूट का उपयोग कर सकते हैं।

हालांकि, चंद्रमा पर बमुश्किल ही वायुमंडल है इसलिए पैराशूट कोई विकल्प नहीं है। जब गर्मी से बचाव की बात आती है तो यह सुविधाजनक है, क्योंकि वाहन को अतिरिक्त वजन उठाने की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन इसे धीमा करने और लैंडिंग को रोकने के लिए अपने इंजनों का उपयोग करने में सक्षम होने की आवश्यकता है। इसका मतलब यह भी है कि ईंधन के सीमित भंडार गलती के लिए बहुत कम गुंजाइश रखते हैं। पर्याप्त ईंधन के साथ दूसरी चिंता सामने आती है चंद्रमा की सतह रेगोलिथ नामक सामग्री से ढकी हुई है। रेगोलिथ धूल, चट्टान और कांच के टुकड़ों का मिश्रण है। चंद्रमा पर क्रू अपोलो मिशन के दौरान एक चिंता भी थी कि एक बड़ा अंतरिक्ष यान सतह में डूब सकता है। 

लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों के सामने असली समस्या यह है कि धूल हर जगह जमा हो जाती है और काफी मात्रा में गुरुत्वाकर्षण इसे रोके रखने में मदद करता है। यह लैंडिंग पर भी लागू होता है। जब कोई अंतरिक्ष यान उतर रहा होता है, तो उसके रॉकेट थ्रस्टर्स धूल फेंकते हैं जो उसके सेंसर को प्रभावित करते हैं। यह गलती यान को गलत दिशा की ओर ले जाती है जिससे एक सपाट लैंडिंग क्षेत्र गड्ढे में तब्दील हो जाता है।

चंद्रयान-3 क्या काम करेगा?

चंद्रयान-3 को एक लैंडर, एक रोवर और एक प्रणोदन मॉड्यूल को मिलाकर बनाया गया है। अकेले प्रणोदन मॉड्यूल लैंडर और रोवर को 100 किलोमीटर की चंद्र कक्षा में ले जाएगा। लैंडर मॉड्यूल लैंडर के कम्प्लीट कॉन्फिगरेशन को बताता है। रोवर चंद्रयान-2 के विक्रम रोवर के जैसे ही होगा, लेकिन सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करने में मदद के लिए इसमें सुधार किए गए हैं। 

चंद्रयान-3 लैंडर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह चंद्रमा में निर्दिष्ट स्थान पर धीरे-धीरे उतर सकता है और रोवर को तैनात कर सकता है, जिसका उद्देश्य चंद्र सतह के इन-सीटू रासायनिक विश्लेषण करना है। प्रणोदन मॉड्यूल लैंडर मॉड्यूल को अंतिम 100 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में ले जाएगा। इस कक्षा में पहुंचने के बाद लैंडर मॉड्यूल और प्रणोदन मॉड्यूल अलग हो जाएंगे। 

प्रणोदन मॉड्यूल अलग होने के बाद चंद्रमा के चारों ओर कक्षा में रहेगा और संचार रिले उपग्रह के रूप में कार्य करेगा। लैंडर, रोवर और प्रणोदन मॉड्यूल अपने खुद के वैज्ञानिक पेलोड ले जाएंगे। बॉक्स के आकार के लैंडर में चार लैंडिंग पैर, चार लैंडिंग थ्रस्टर, एक सुरक्षित टचडाउन सुनिश्चित करने के लिए कई सेंसर और खतरों से बचने के लिए कैमरे लगाए गए हैं। 

लैंडर एक एक्स बैंड एंटीना से भी लैस है जो संचार सुनिश्चित करेगा। रोवर आयत के आकार का है और इसमें छह पहिए और एक नेविगेशन कैमरा है।