वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अरुणलोक घोष कहते हैं कि बीते कई दशकों के ग्राम पंचायत चुनाव का इतिहास उठाकर देख लीजिए पता यही चलता है कि जो ग्राम पंचायत के चुनावों में जीतता आया है, वही पश्चिम बंगाल की सत्ता पर भी शासन करता है। उनका मानना है कि पश्चिम बंगाल में राज्य की सत्ता की चाबी यहां के ग्राम पंचायत चुनावों से होकर ही निकलती है...
पश्चिम बंगाल में होने वाले ग्राम पंचायत चुनावों से पहले एक बार फिर से वहां के जिलों की धरती खून से लाल होने लगी है। लगातार हो रही हिंसा और झड़पों के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर क्या वजह है कि पश्चिम बंगाल में किसी भी तरह के चुनावों से पहले हिंसा आम हो जाती है। पश्चिम बंगाल के राजनीतिक जानकारों के मुताबिक दरअसल यहां के ग्राम पंचायतों के चुनाव इतने अहम होते हैं कि राज्य की सत्ता के पहुंचने का सबसे बड़ा जरिया यही चुनाव है। इसके अलावा खुफिया जानकारी यह भी है कि पश्चिम बंगाल में बालू, पत्थर, कोयला, मिट्टी समेत अन्य तरह के बड़े खनिज पदार्थों के खनन की देखरेख भी ग्राम पंचायतों के हाथ में ही है।
यही सबसे बड़ा कारण है कि वैध और अवैध रूप से होने वाले इस खनन पर कब्जे की चाहत में चुनावों से पहले जबर्दस्त हिंसा होना आम बात हो गई है। राजनीतिक जानकार ये मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में सत्ता पाने और सत्ता खोने का प्रमुख कारण ग्रामीण चुनावों में मजबूती और चुनाव में होने वाली हिंसा ही है। हालांकि पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार की एक बार फिर से इन्ही घटनाओं को लेकर आपस में ठन गई है।
खनन के पट्टे ग्राम पंचायतों से मिलते हैं
पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों से पहले की हिंसा को लेकर कई तरह की खुफिया जानकारियां भी सामने आ रही हैं। केंद्र की प्रमुख खुफिया एजेंसी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक दरअसल पश्चिम बंगाल में इस तरीके की हिंसा के पीछे कई कारण सामने आ रहे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि बहुत से कारणों का खुलासा पब्लिक फोरम पर तो नहीं किया सकता है, लेकिन एक अहम कारण जो पता चला है वह यह है कि पश्चिम बंगाल के ग्राम पंचायतों के पास ही बालू, पत्थर, कोयला, मिट्टी समेत अन्य बेशकीमती खनिजों को रेगुलेट करने की ताकत होती है। जानकारी के मुताबिक ग्राम पंचायतों के पास यह शक्ति होने के चलते ही चुनाव भी उतने ही हिंसक हो जाते हैं। पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार देवाशीष कहते हैं कि हिंसा की कई वजहों में से एक वजह यह भी है। हालांकि उनका मानना है कि हिंसा की अकेली यही वजह नहीं है। देवाशीष के मुताबिक सत्ता की धमक और ताकत के साथ इस तरीके के खनन के पट्टों को नियंत्रित करने के मामले और उसमें होने वाली हिंसा तो चुनावों के बाद भी सामने आती रहती है।
ग्राम पंचायत के चुनाव पश्चिम बंगाल के सत्ता की चाबी होते हैं
पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अरुणलोक घोष कहते हैं कि बीते कई दशकों के ग्राम पंचायत चुनाव का इतिहास उठाकर देख लीजिए पता यही चलता है कि जो ग्राम पंचायत के चुनावों में जीतता आया है, वही पश्चिम बंगाल की सत्ता पर भी शासन करता है। उनका मानना है कि पश्चिम बंगाल में राज्य की सत्ता की शीर्ष चाबी यहां के ग्राम पंचायत चुनावों से होकर ही निकलती है। यही वजह है कि यहां के चुनावों में हिंसा आम बात हो चुकी है। घोष के मुताबिक देश के किसी भी राज्य में पंचायत चुनावों में इतनी हिंसा की सूचनाएं कभी नहीं आती है, जितनी कि पश्चिम बंगाल से आती हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में एक बड़ा तबका ग्रामीण क्षेत्र पंचायतों से ताल्लुक रखता है। पुरानी सरकारों ने खासतौर से वाम दलों ने जिस तरह से ग्राम पंचायतों को ताकत दी, उससे यह कहा जाने लगा कि राज्य में भी सत्ता उसी की होती है, जिसकी ग्राम पंचायतो में अधिक नेतृत्व और भागीदारी होती है।
2008 में वामदलों की पंचायतों में पकड़ ढीली हुई तो सत्ता चली गई
घोष कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में तीन दशक तक सत्ता पर राज करने वाले वामदलों ने ग्राम पंचायतों को ताकत देने के साथ ही पंचायतों में अपनी मजबूत पकड़ बनाई थी। यही वजह रही कि जब तक ग्राम पंचायतों में वामदलों की पकड़ मजबूत रही, तब तक वह सत्ता में रहे। घोष कहते हैं कि 2008 में जब वामदलों ने ग्राम पंचायतों के चुनाव हारने शुरू किए, तो उसके बाद उनके हाथ से राज्य की सत्ता भी खिसक गई। वरिष्ठ पत्रकार देवाशीष बोस कहते हैं कि 1977 के चुनावों में जब कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में सत्ता खोई, तो उसके पीछे का प्रमुख कारण राजनीतिक हिंसा और हत्याएं ही मानी गईं। वह कहते हैं कि जब ममता बनर्जी ने 1998 में तृणमूल कांग्रेस का गठन किया तो उसके बाद होने वाले चुनावों में भी जमकर हिंसा हुई। उनका मानना है कि सिर्फ टीएमसी के दौर में ही नहीं बल्कि कांग्रेस और सीपीएम की सरकारों में भी इस तरीके का सिलसिला लगातार चलता रहा। उनका कहना है कि हिंसा के चरण और ग्रामीण स्तर पर कमजोर होते नेटवर्क के चलते कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। ठीक उसी तरह वामदल भी 34 साल तक शासन करने के बाद इसी के चलते सत्ता से बाहर हो गए।
लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा असर
पश्चिम बंगाल के ग्राम पंचायत चुनावों में जैसी हिंसा हुई है उसका आने वाले लोकसभा के चुनावों पर भी असर पड़ेगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में इस हिंसा के दौरान केंद्र ने हस्तक्षेप किया है और भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया है। उससे स्पष्ट है कि लोकसभा के चुनाव में पंचायत चुनावों के इस हिंसा को बड़ा मुद्दा बनाया जाएगा। राजनीतिक विश्लेषक दीपन चटर्जी कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के अलग-अलग क्षेत्रों में आगजनी हिंसा और हत्याओं के बाद भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता आमने-सामने आए हैं। वह मानते हैं कि कानून व्यवस्था के लिहाज से ऐसा होना किसी भी राज्य की सुखद तस्वीर के लिहाज से बेहतर नहीं है। लेकिन सियासी नजरिए से अब सभी राजनीतिक दल इसे आने वाले लोकसभा के चुनावों में भुनाने की कोशिश में लगे हैं। उनका मानना है कि बीते कुछ सालों में पश्चिम बंगाल में होने वाले किसी भी तरह के चुनाव से पहले की हिंसा को मजबूती के साथ विपक्षी दल और सत्ता पक्ष आमने सामने रखते हैं और उसका असर चुनाव में पड़ता ही है। इसलिए यह बात बिल्कुल तय है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में पंचायत चुनावों की हिंसा का असर निश्चित तौर पर देखने को मिलेगा। उनका कहना है कि क्योंकि लोकसभा चुनावों से पहले पंचायत चुनाव राज्य में आखिरी चुनाव हैं। जिसमें सभी राजनीतिक दल अपनी ताकत दिखाने का बड़ा आधार भी तैयार कर रहे हैं।
टीएमसी कर रही पंचायत चुनाव में गड़बड़ी
भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों का राज्य की सरकार ने मजाक बनाकर रख दिया है। वह कहते हैं कि पश्चिम बंगाल की पुलिस और यहां की सरकार जिस तरीके से बर्ताव कर रही है, वह लोकतांत्रिक और चुनाव इतिहास के लिए काला अध्याय है। त्रिवेदी ने कहा कि पंचायत चुनाव के नामांकन के अंतिम दिन में महज चार घंटे के भीतर 341 ब्लॉक में चालीस हजार से ज्यादा लोगों ने नामांकन किया। यानी कि औसतन 2 मिनट के भीतर एक नामांकन हो गया। सुधांशु त्रिवेदी इस पर सवालिया निशान उठाते हुए कहते हैं कि क्या ऐसा संभव है कि दो मिनट के भीतर नामांकन प्रक्रिया हो जाए। वह कहते हैं कि तृणमूल कांग्रेस ने नामांकन प्रक्रिया का मजाक बनाकर रख दिया है। पश्चिम बंगाल के हालातों पर त्रिवेदी ने कहा कि अब तो राज्यपाल भी वहां पर स्थितियों का जायजा लेने के लिए पहुंच रहे हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता जयप्रकाश मजूमदार का कहना है कि राज्य में ऐसे हालात भाजपा के कार्यकर्ताओं की वजह से हुए हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार जबरदस्ती राज्य में अपना हस्तक्षेप करती है और यहां की जनता को हमेशा खौफ के साये में जीने को मजबूर कर देती है।