वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :-भारतीय कंपनियों को विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कम ब्याज दर पर ऋण की पर्याप्त सुविधा मिलती रहे, इसका ध्यान रखने की जरूरत है।
विगत तीन मई को अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में 25 आधार बिंदुओं की वृद्धि करते हुए इसे 5.25 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। मार्च, 2022 के बाद से यूएस फेड दर में यह लगातार 10वीं बार वृद्धि की गई है एवं वर्ष 2007 के बाद से यूएस फेड दर अपने उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई है। हालांकि, मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से फेड दर में वृद्धि की जा रही है, परंतु अब उच्च ब्याज दरों का विपरीत प्रभाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। हाल ही में दो अमेरिकी बैंक- सिलिकॉन वैली बैंक एवं सिग्नेचर बैंक विफल हो चुके हैं एवं तीसरा बैंक फर्स्ट रिपब्लिक भी विफल होने की स्थिति में पहुंच गया था, परंतु उसे समय रहते जेपी मोर्गन कंपनी को बेच दिया गया।
चूंकि अमेरिका में ब्याज दरों को लगातार बढ़ाया जा रहा है और निवेशकों द्वारा अन्य देशों से अमेरिकी डॉलर निकालकर अमेरिका में निवेश किया जा रहा है, अतः अन्य देशों की मुद्राओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है और इन देशों की मुद्राओं का अवमूल्यन हो रहा है। इन देशों की मुद्राओं के अवमूल्यन से आयात महंगे हो रहे हैं। इससे निपटने के लिए दूसरे देश भी ब्याज दरों में वृद्धि कर अपने देश के बैकों को खतरे में डाल रहे हैं। इस प्रकार अमेरिकी आर्थिक नीतियों का असर अन्य देशों को भी विपरीत रूप से प्रभावित कर सकता है।
अमेरिका द्वारा लगातार की जा रही ब्याज दरों में वृद्धि को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक भी रेपो दर में वृद्धि करने का निर्णय ले रहा था। परंतु अप्रैल में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में वृद्धि न करने का निर्णय लिया, जो एक साहसिक कदम है। भारत को देखते हुए कुछ अन्य देशों ने भी ब्याज दरों में लगातार वृद्धि को रोक लिया। ब्याज दरों में अब और वृद्धि भारतीय बैंकिंग उद्योग एवं उद्योग जगत पर निश्चित रूप से विपरीत असर डालेगी, क्योंकि एक तो भारत में मुद्रास्फीति तुलनात्मक रूप से नियंत्रण में आ चुकी है और दूसरे, भारत तेज आर्थिक विकास चक्र में शामिल हो चुका है। अप्रैल में वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण का उच्चत्तम स्तर पर आना, हवाई यात्रियों की बढ़ती संख्या, टोल संग्रहण में उछाल, सेवा क्षेत्र के पीएमआई (परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स) का 13 वर्ष के उच्चत्तम स्तर 62 पर पहुंचना, विनिर्माण क्षेत्र के पीएमआई का चार माह के उच्चत्तम स्तर पर पहुंचना, आदि ऐसे सूचक हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत स्थिति में है।
वर्ल्ड ऑफ स्टेटिक्स द्वारा जारी प्रतिवेदन में भी बताया गया है कि बड़े देशों में भारत अकेला ऐसा देश है, जहां मंदी की आशंका शून्य है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, वर्ष 2023 में दुनिया में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत ही पुनः सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।
हाल ही में भारत द्वारा विभिन्न देशों के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौतों का असर भी अब भारतीय निर्यात पर दिखाई देने लगा है। मुक्त व्यापार समझौता लागू होने के बाद भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच विदेशी व्यापार में काफी वृद्धि हुई है। डिजिटल अर्थव्यवस्था के मामले में भी भारत पूरे विश्व को राह दिखा रहा है। भारत में डिजिटल क्रांति एवं सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के बाद अब भारतीय कंपनियां अमेरिका में भी बड़ी संख्या में वहां के नागरिकों को रोजगार दे रही हैं।
भारतीय कंपनियां न केवल भारत में, बल्कि अन्य देशों में भी अपने व्यवसाय को विस्तार दे रही हैं। इन भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कम ब्याज दर पर ऋण की पर्याप्त सुविधा मिलती रहे, इसका ध्यान रखने की सख्त जरूरत है। अतः भारत में ब्याज दरों को निचले स्तर पर बनाए रखना आवश्यक है। अमेरिका को भी आने वाले समय में ब्याज दरों में वृद्धि को रोकना चाहिए, अन्यथा अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ साथ विश्व में अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी विपरीत रूप से प्रभावित हो सकती हैं।