वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-बसपा के वोट बैंक में पहले भाजपा और अब सपा की लग रही सेंधमारी से बसपा के रणनीतिकारों ने अब नई योजना बनानी शुरू की है। इसमें सबसे पहले अपने खोए हुए वोट बैंक को वापस पाने के साथ-साथ ब्राह्मण और मुसलमानों को भी रिझाने की योजना बना रही है...
बीते विधानसभा के चुनावों में मायावती के कोर वोट बैंक में भाजपा ने सेंधमारी कर ली। जिन मुसलमान वोटों के दम पर बसपा खुद को मजबूत होने का दम भरती है, वह भी एक तरफा समाजवादी पार्टी के साथ हो गया। अब रही सही कसर अखिलेश यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ मिलकर काशीराम की प्रतिमा के अनावरण के साथ बसपा के बड़े कोर वोट बैंक में सेंधमारी करने की तैयारी कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बसपा को अपने पैरों के नीचे खिसक रही जमीन का अहसास है। यही वजह है कि मायावती ने लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड का जिक्र कर भावनात्मक रूप से अपने वोटर्स को जोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया है।
अखिलेश यादव ने किया कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण
जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। वोट बैंक की राजनीति में सभी पार्टियों ने जोर आजमाइश भी शुरू कर दी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लड़ाई बसपा के कोर वोट बैंक को तोड़ने को लेकर मची हुई है। यही वजह है कि बसपा से भाजपा और भाजपा से सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने कॉलेज में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण अखिलेश यादव से कराने की योजना बनाई। राजनीतिक विश्लेषक एसके सिन्हा कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की ओर से काशीराम की प्रतिमा का अनावरण कराए जाने से बसपा में जबरदस्त उथल-पुथल मचनी शुरू हो गई। दरअसल ऐसा करके समाजवादी पार्टी की ओर से दलित वोट बैंक को लुभाने की कोशिश मानी जा रही है और समाजवादी पार्टी की यही कोशिश बसपा के लिए सिरदर्द बन रही है।
30 सालों में बसपा को मिले सबसे कम वोट
सिन्हा कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनावों में बसपा को मिला तकरीबन 13 फ़ीसदी वोट बीते तीन दशक में सबसे कम वोट प्रतिशत है। 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा का तकरीबन 23 फ़ीसदी वोट था और 19 सीटें हुआ करती थीं। 2022 के विधानसभा चुनावों में यह वोट बैंक 13 फ़ीसदी पर खिसक गया और महज एक सीट के साथ मायावती को संतोष करना पड़ा। राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि मायावती के वोट बैंक में हुई सेंधमारी का फायदा भाजपा को अच्छा खासा हुआ है। वह कहते हैं कि हालांकि बसपा ने मुसलमानों को रिझाने के लिए प्रयास जरूर किया था, लेकिन वह समाजवादी पार्टी में एक तरफा चला गया। नतीजा हुआ कि बसपा की वह सीटें जहां कभी उसका झंडा बुलंद रहता था, वहां पर पार्टी लगातार हारती रही। सियासी जानकारों का कहना है कि बसपा के खिसके हुए जनाधार को वापस पाने के लिए पार्टी ने क्या प्रयास किए और वह कितने सफल हुए इसका अंदाजा लोकसभा चुनावों में ही दिखेगा। लेकिन समाजवादी पार्टी ने बसपा के वोट बैंक को तोड़ने में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है। स्वामी प्रसाद मौर्य के कॉलेज में काशीराम की प्रतिमा का अनावरण इसी का एक उदाहरण है।
प्रतिमा के अनावरण जरिए दलितों को दिया बड़ा संदेश
बसपा के वोट बैंक में पहले भाजपा और अब सपा की लग रही सेंधमारी से बसपा के रणनीतिकारों ने अब नई योजना बनानी शुरू की है। इसमें सबसे पहले अपने खोए हुए वोट बैंक को वापस पाने के साथ-साथ ब्राह्मण और मुसलमानों को भी रिझाने की योजना बना रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती ने अपनी अहम बैठक में गेस्ट हाउस कांड का भी यूं ही जिक्र नहीं किया है। राजनीतिक विश्लेषक जटाशंकर सिंह कहते हैं कि मायावती को इस बात का भली-भांति अंदाजा है कि उनका वोटर उनसे कैसे जुड़े। हालांकि यह बात अलग है कि बीते चुनावों में वह अपने वोटर को मजबूत तरीके से अपने साथ जोड़ नहीं सके, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए उन्होंने अपने वोटर्स को गेस्ट हाउस कांड की याद जरूर दिला दी। ताकि आने वाले लोकसभा के चुनावों में भावनात्मक रूप से उनका वोटर मायावती से सीधे रूप से जुड़ सकें।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मायावती का वोट बैंक जिस तरीके से धीरे-धीरे खिसक रहा है वह पार्टी के लिए चिंता का विषय बना हुआ ही है। राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं, जिस तरीके से भाजपा ने अपनी डबल इंजन की सरकार से केंद्र की योजनाओं के माध्यम से ना सिर्फ दलितों बल्कि मुसलमानों के बीच में अपनी पकड़ बनानी शुरू की है, कई राजनीतिक दलों के लिए चिंता की बात है। वह कहते हैं कि बसपा की दलितों पर कमजोर पड़ती पकड़ का फायदा समाजवादी पार्टी उठाने की पूरी कोशिश में लगी हुई है। यही वजह है कि कांशीराम की प्रतिमा के अनावरण के साथ समाजवादी पार्टी दलितों के बीच एक बड़ा संदेश देने की तैयारी कर चुकी है। सियासी जानकारों का कहना है कि दलितों के वोट बैंक की लड़ाई समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच में हो रही है।