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भारत देगा अफगानी डिप्लोमैट्स को खास ट्रेनिंग, लेकिन तालिबान को मान्यता नहीं

वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में मंगलवार से आयोजित होने वाले चार दिवसीय डिप्लोमैटिक ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में एक रिटायर्ड विदेश सेवा से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि पहले भी अफगानिस्तान में भारत की ओर से उनकी सेना और डिप्लोमैट्स को प्रशिक्षण देता रहा है। क्योंकि तालिबान भारत से हमेशा अच्छे रिश्ते बनाकर रखना चाहता है...

अफगानिस्तान को राशन और दवाओं की खेप भेजने के बाद अब तालिबानी सरकार के डिप्लोमैट्स को भारत आज से प्रशिक्षण देने जा रहा है। यह प्रशिक्षण कैंप अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के भारतीय दूतावास में होगा। चार दिन के इस प्रशिक्षण कैंप में हिस्सा लेने के लिए अफगान की तालिबानी सरकार के विदेश मंत्रालय ने अपने सभी डिप्लोमैट्स को चिट्ठी लिखकर इसमें शरीक होने के लिए कहा है। विदेशी मामलों के जानकारों के मुताबिक पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच चल रही अंदरूनी तनातनी के बीच में भारत का यह कदम बड़ा डिप्लोमेटिक शॉट माना जा रहा है।

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में तल्खी

अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से 23 जनवरी को जारी हुए आधिकारिक पत्र में शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में जानकारी साझा की गई थी। अफगानी सरकार की ओर से जारी पत्र के मुताबिक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और भारतीय डिप्लोमैट्स इस प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लेंगे। भारत के एक्सपर्ट की ओर से अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय को दी जाने वाली इस ट्रेनिंग के कई डिप्लोमेटिक मायने भी हैं। विदेशी मामलों के जानकार रिटायर्ड कर्नल एसएन दत्ता कहते हैं कि भारत में बीते कुछ समय से जिस तरीके से अफगानिस्तान की समय-समय पर मदद की है, वह भारत को उस हिस्से में स्थापित करने में मदद कर रहा है जहां पर चीन और पाकिस्तान की सबसे ज्यादा दखल है।

विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि बीते कुछ समय से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में तल्खी देखने को मिल रही है। वह कहते हैं चूंकि अफगानिस्तान पूरी दुनिया में खुद को स्थापित सरकार के तौर पर साबित करना चाह रहा है इसलिए वह किसी भी विवाद में पड़ने की बजाय अब डिप्लोमेटिक रिश्तों को मजबूती से सुधारने की ओर बढ़ रहा है। उनका कहना है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान को एक अपने फायदे के लिए महज पड़ोसी देश से ज्यादा उसको कुछ नहीं समझ रहा है। इसलिए अफगानिस्तान ने अपनी डिप्लोमेटिक रिश्तों को उन देशों से जोड़ना शुरू किया है, जहां से उसे फायदा हो सके। इस कड़ी में अफगानिस्तान शुरुआत से ही भारत को अपना साझीदार बनाने की कोशिश में लगा हुआ था।

तालिबान के लिए भारत से रिश्ते बनाना फायदे का सौदा

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में मंगलवार से आयोजित होने वाले चार दिवसीय डिप्लोमेटिक ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में एक रिटायर्ड विदेश सेवा से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि पहले भी अफगानिस्तान में भारत की ओर से उनकी सेना और डिप्लोमैट्स को प्रशिक्षण देता रहा है। क्योंकि तालिबान भारत से हमेशा अच्छे रिश्ते बनाकर रखना चाहता है। इसीलिए बीते कुछ महीनों में कई मौकों पर तालिबान ने पाकिस्तान के साथ न सिर्फ रूखा व्यवहार किया बल्कि उसकी आलोचना भी की। विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि तालिबान को यह अच्छी तरह से पता है कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते बनाकर वह न तो आर्थिक रूप से मजबूत हो सकता है और न ही डिप्लोमेटिकली खुद को दुनिया के अलग-अलग देशों में स्थापित कर सकता है।

यही वजह है कि अफगानिस्तान ने भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने शुरू किए हैं। विदेशी मामलों के जानकार ए रियाज कहते हैं कि पूरी दुनिया में भारत के डिप्लोमैट्स कि अलग पहचान बनी हुई है। दुनिया के अलग-अलग देशों में जाकर अफगानिस्तान के ही डिप्लोमैट्स बेहतर तरीके से काम कर सकें, इसीलिए अफगानिस्तान ने भारत के प्रमुख इंस्टीट्यूशंस और डिप्लोमैट्स के साथ अपने डिप्लोमैट्स की ट्रेनिंग भी शुरू करवाई है। वह कहते हैं यह बात सही है कि भारत तालिबान को मान्यता नहीं देगा, लेकिन रणनीतिक तौर पर वह अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार से अच्छे रिश्ते बनाकर जरूर रखेगा।

भारत ने की अफगानिस्तान की मदद

कर्नल दत्ता कहते हैं कि जब 2021 में अफगानिस्तानी सरकार का तख्तापलट करते हुए तालिबान ने अपनी सरकार बनाई, तो दुनिया के तमाम दूतावास बंद हो गए। लेकिन चीन और पाकिस्तान वहां पर मौजूद रहे। वह कहते हैं शुरुआती दौर में अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार ने इसको अपने लिए फायदे का सौदा माना, लेकिन बदलते वक्त के साथ उसे लगा कि दुनिया के देशों में बेहतर रिश्ते के लिए इन देशों के अलावा भारत जैसे देश से रिश्ते मजबूत करना उसके लिए फायदे का सौदा है। इसलिए अफगानिस्तान ने भारत के साथ मजबूत रिश्तों की नींव रखनी शुरू की। वह कहते हैं कि बीते कुछ समय में जिस तरीके से भारत ने अफगानिस्तान की मदद की है उससे अफगानिस्तान और भारत के रिश्ते रणनीतिक तौर पर मजबूत हुए हैं। भारत में हाल में ही अफगानिस्तान को पाकिस्तान के सड़क मार्ग से 50 ट्रक राशन भेजा। इससे पहले भारत पांच बार अफगानिस्तान को जीवन रक्षक दवाओं के साथ साथ कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन और अन्य दवाएं भी भेज चुका है।

विदेशी मामलों के जानकारों का कहना कि भौगोलिक रूप से अफगानिस्तान भारत के दो दुश्मन देशों की सीमा से लगता हुआ देश है। ऐसे में भारत अपनी मजबूत रणनीतिक पकड़ अफगानिस्तान में बनाकर रखता है, तो पाकिस्तान और चीन से कई मायनों में मुकाबला करना न सिर्फ आसान होगा बल्कि रणनीतिक तौर पर कई मामलों में चीन और पाकिस्तान को पीछे भी रख सकते हैं। खासतौर से उन सभी मामलों में हम चीन और पाकिस्तान पर नजर भी बनाए रख सकते हैं, जो वह अफगानिस्तान की जमीन के माध्यम से कर रहा है। वह कहते हैं कि अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार भी भारत से मिल रही लगातार मदद के साथ वह चीन और पाकिस्तान से थोड़ी दूरी ही बनाकर चल रहा है। उनका कहना है कि भारत के लिए अफगानिस्तान शुरुआत से रणनीतिक तौर पर एक महत्वपूर्ण देश रहा है। क्योंकि वहां पर अब तालिबानी सरकार है और भारत उसे मान्यता नहीं दे रहा है। लेकिन रणनीतिक तौर पर रिश्तो को मजबूत करके भारत ने एक मजबूत डिप्लोमेटिक शॉट तो खेला ही है।