वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ का मानना है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने के लिए लोक सेवक द्वारा रिश्वत की मांग का प्रत्यक्ष प्रमाण आवश्यक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिश्वत मांगे जाने का सीधा सबूत न होने या शिकायतकर्ता की मृत्यु हो जाने के बावजूद भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोष साबित हो सकता है। 5 जजों की संविधान पीठ ने माना है कि जांच एजेंसी की तरफ से जुटाए गए दूसरे सबूत भी मुकदमे को साबित कर सकते हैं।
अभियोजन पक्ष को भी ईमानदार प्रयास करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं के साथ-साथ अभियोजन पक्ष को भी ईमानदार प्रयास करना चाहिए ताकि भ्रष्ट लोक सेवकों को सजा दी जा सके और उन्हें दोषी ठहराया जा सके ताकि प्रशासन और शासन भ्रष्टाचार से मुक्त हो सके। पीठ में जस्टिस बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बी वी नागरथना भी शामिल थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि भले ही मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न हो, संबंधित प्रावधानों के तहत लोक सेवक को दोषी ठहराया जा सकता है।
क्या है भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम संशोधित विधेयक- 2018 में रिश्वत देने वाले को भी इसके दायरे लाया गया है। इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान है। लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केंद्र के मामले में लोकपाल से तथा राज्यों के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेनी होगी। रिश्वत देने वाले को अपना पक्ष रखने के लिये 7 दिन का समय दिया जाएगा, जिसे 15 दिन तक बढ़ाया जा सकता है। जाँच के दौरान यह भी देखा जाएगा कि रिश्वत किन परिस्थितियों में दी गई है।