वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों ने पांच अगस्त 2019 को सरकार से संसद के नए भवन के निर्माण के लिए आग्रह किया था। इसके बाद 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के नए भवन का शिलान्यास किया था।
संसद का विशेष सत्र 22 सितंबर तक चलेगा। गणेश चतुर्थी के दिन यानी आज से संसद के नए भवन में कार्यवाही की शुरुआत होगी। नए संसद भवन में कार्यवाही की शुरुआत से पहले एक विशेष पूजा भी होगी। आइए जानते हैं कि नए संसद भवन बनने की शुरुआत कब हुई थी? पुराने संसद भवन की जगह नए भवन की जरूरत क्यों हुई? दोनों एक दूसरे से कितने अलग, किसमें क्या खास?
नए संसद भवन बनने की शुरुआत कब हुई थी?
लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों ने पांच अगस्त 2019 को सरकार से संसद के नए भवन के निर्माण के लिए आग्रह किया था। इसके बाद 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के नए भवन का शिलान्यास किया था। संसद के नवनिर्मित भवन को गुणवत्ता के साथ रिकॉर्ड समय में तैयार किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई 2023 को नवनिर्मित संसद भवन का उद्घाटन किया था।
नए संसद भवन की जरूरत क्यों हुई?
भारत की लोकतांत्रिक भावना का प्रतीक, संसद भवन सेंट्रल विस्टा के केंद्र में अवस्थित है। ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन वर्तमान संसद भवन एक औपनिवेशिक युग की इमारत है, जिसके निर्माण में छह वर्ष (1921-1927) लगे। मूल रूप से 'हाउस ऑफ पार्लियामेंट' कही जाने वाली इस इमारत में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद कार्यरत थी। अधिक स्थान की मांग को पूरा करने के लिए वर्ष 1956 में संसद भवन में दो और मंजिलें जोड़ी गईं। भारत की समृद्ध विरासत के 2,500 वर्षों को प्रदर्शित करने के लिए संसद संग्रहालय को वर्ष 2006 में जोड़ा गया। आधुनिक संसद के उद्देश्य के अनुरूप इस इमारत को बड़े पैमाने पर संशोधित किया जाना था।
भवन के आकार के बारे में प्रारंभिक विचार-विमर्श के बाद, दोनों आर्किटेक्ट, हर्बर्ट बेकर और सर एडविन लुटियंस द्वारा एक गोलाकार आकार को अंतिम रूप दिया गया था क्योंकि यह काउंसिल हाउस के लिए एक कालेजियम डिजाइन का अनुभव देती थी। ऐसा माना जाता है कि मुरैना, (मध्य प्रदेश) में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर के अद्वितीय गोलाकार आकार ने परिषद भवन के डिजाइन को प्रेरित किया था, हालांकि इसके कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं।
संसद भवन का निर्माण वर्ष 1921 में शुरू किया गया और वर्ष 1927 में इसे प्रयोग में लाया गया। यह लगभग 100 वर्ष पुराना एक विरासत ग्रेड-I भवन है। गत वर्षों में, संसदीय कार्यों और उसमें काम करने वाले लोगों और आगंतुकों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। संसद भवन के मूल डिजाइन का कोई अभिलेख या दस्तावेज नहीं है। इसलिए, नए निर्माण और संशोधन अस्थायी रूप से किए गए हैं। उदाहरण के लिए, भवन के बाहरी वृत्तीय भाग पर वर्ष 1956 में निर्मित दो नई मंजिलों से सेंट्रल हॉल का गुंबद छिप गया है और इससे मूल भवन के आगे के भाग का परिदृश्य बदल गया है। इसके अलावा, जाली की खिड़कियों को कवर करने से संसद के दोनों सदनों के कक्ष में प्राकृतिक प्रकाश कम हो गया है। इसीलिए, यह अधिक दबाव और अतिउपयोग के संकेत दे रहा हैं तथा स्थान, सुविधाओं और प्रौद्योगिकी जैसे मौजूदा आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं है।
नए संसद भवन के अस्तित्व में आने की कई प्रमुख वजहें हैं, जैसे-
सांसदों के बैठने की संकीर्ण जगह: वर्तमान भवन को पूर्ण लोकतंत्र के लिए द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने के लिए कभी भी डिजाइन नहीं किया गया था। 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन पर आधारित लोकसभा सीटों की संख्या 545 पर अपरिवर्तित बनी हुई है। 2026 के बाद इसमें काफी वृद्धि होने का अनुमान है क्योंकि सीटों की कुल संख्या पर स्थिरता केवल 2026 तक ही है। बैठने की व्यवस्था तंग और बोझिल है, दूसरी पंक्ति से परे कोई डेस्क नहीं है। सेंट्रल हॉल में केवल 440 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है। जब संयुक्त सत्र होते हैं तो सीमित सीटों की समस्या और बढ़ जाती है। आवाजाही के लिए सीमित स्थान होने के कारण यह सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा जोखिम है।
तंग बुनियादी ढांचा: बीते वर्षों के दौरान, पानी की आपूर्ति लाइनों, सीवर लाइनों, एयर कंडीशनिंग, अग्निशमन, सीसीटीवी, ऑडियो वीडियो सिस्टम जैसी सेवाओं को जोड़ा गया, जो मूल रूप से नियोजित नहीं थी। हालांकि, इन सुविधाओं को उपलब्ध करवाए जाने से भवन में सीलन आ गई है और इससे भवन का समग्र सौंदर्य बिगड़ गया है। अग्नि सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकि भवन को वर्तमान अग्नि मानदंडों के अनुसार डिजाइन नहीं किया गया है। कई नए विद्युत केबल लगाए गए हैं जो संभावित आग के लिए खतरा थे।
अप्रचलित संचार संरचनाएं: इस भवन की विद्युत, यांत्रिक, वातानुकूलन, प्रकाश व्यवस्था, दृश्य-श्रव्य, ध्वनिक, सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली और सुरक्षा अवसंरचना बिल्कुल पुरानी है और इसे आधुनिक बनाने की आवश्यकता थी।
सुरक्षा सरोकार: 93 साल पुरानी इस इमारत में अपनी संरचनात्मक मजबूती स्थापित करने के लिए समुचित दस्तावेजीकरण और मानचित्रण का अभाव है। चूंकि इसकी संरचनात्मक मजबूती को स्थापित करने के लिए बेधन परीक्षण नहीं किए जा सकते हैं, क्योंकि वे संसद के कामकाज को गंभीर रूप से बाधित कर सकते हैं, इसलिए इस भवन को भूकंपरोधी प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। यह विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि दिल्ली का भूकंप जोखिम गुणॉक भवन निर्माण के समय के भूकंपीय क्षेत्र- II से भूकंपीय क्षेत्र- IV में स्थानांतरित हो गया है, जिसके जोन-V में बढ़ जाने की आशंका है।
कर्मचारियों के लिए अपर्याप्त कार्यक्षेत्र: कार्यक्षेत्र की बढ़ती मांग के साथ, आंतरिक सेवा गलियारों को कार्यालयों में परिवर्तित कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप खराब गुणवत्ता वाले और संकीर्ण कार्यस्थल बने। स्थान की लगातार बढ़ती हुई मांग को समायोजित करने के लिए, मौजूदा कार्यक्षेत्र के भीतर उप-विभाजन बनाए गए, जिससे कार्यालय में भीड़भाड़ हो गई।
कब-कब हुई इसकी मांग?
लोकसभा अध्यक्षों- मीरा कुमार ने दिनांक 13.07.2012, सुमित्रा महाजन ने दिनांक 09.12.2015 और ओम बिरला ने दिनांक 02.08.2019 के अपने पत्र में सरकार से संसद के लिए नए भवन के निर्माण का अनुरोध किया था।
पर्यावरण के खास ख्याल
नए संसद भवन के लिए दिल्ली वन विभाग से जामुन के 13 पेड़ों सहित 404 पेड़ों के प्रत्यारोपण की अनुमति प्राप्त की गई थी। इन पेड़ों को इको पार्क में प्रत्यारोपित किया गया और इनमें से अधिकांश पेड़ (80% से अधिक) जीवित हैं। इसके अलावा, ईको पार्क, एन.टी.पी.सी. बदरपुर में क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के रूप में 4,040 पेड़ लगाए गए।