वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :-कांग्रेस प्रवक्ता रोहन गुप्ता कहते हैं कि 2023 की सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में चुनाव जीतना है। 2018 में हमारी तीनों राज्यों में सरकार थी। मध्यप्रदेश में सरकार ऑपरेशन लोटस का शिकार हो गई। रोहन कहते हैं कि एक भी राज्य में हारे तो 2024 में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी...
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दावा करते हैं कि उनकी पार्टी मध्यप्रदेश में 150 सीटों से ज्यादा जीतेगी। राजस्थान भी जीतेंगे। छत्तीसगढ़ को लेकर उन्हें कोई मुगालता नहीं है। रोहन गुप्ता, संजीव सिंह समेत रणदीप सुरजेवाला की टीम कर्नाटक से लौटने के बाद कह रही है कि कांग्रेस को जीत का मंत्र मिल गया है। दूसरी तरफ जुलाई में अपना 81वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का उत्साह लौट आया है। महासचिव संगठन केसी वेणुगोपाल का भी। लेकिन पार्टी के रणनीतिकार मान रहे हैं कि 2024 की चुनौतियां अभी काफी बड़ी हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के मुताबिक कांग्रेस 2024 में अच्छा नतीजा लाने के लिए मंथन कर रही है। विपक्षी दलों में सहयोग और तालमेल की बात हो रही है। एक अन्य पूर्व कानून मंत्री का कहना है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम) का मंत्र ही इसका आधार बनेगा। लेकिन कांग्रेस के सामने पहले 2023 की चुनौतियां हैं। हमें पहले 2023 से पार पाना है। सूत्र का कहना है कि 2024 का रास्ता इस बार 2023 से ही होकर जाएगा।
2024 के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जीतना जरूरी है
कांग्रेस प्रवक्ता रोहन गुप्ता कहते हैं कि 2023 की सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में चुनाव जीतना है। 2018 में हमारी तीनों राज्यों में सरकार थी। मध्यप्रदेश में सरकार ऑपरेशन लोटस का शिकार हो गई। रोहन कहते हैं कि एक भी राज्य में हारे तो 2024 में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। रणदीप सुरजेवाला की पूरी टीम मान रही है कि कर्नाटक के चुनाव ने जीत का मंत्र दे दिया है। हमें कहां कितना, कैसे बोलना और मुद्दा उठाना है, वह पता चल गया है। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अब हमारे पास मल्लिकार्जुन खरगे हैं। वह निर्णय ले रहे हैं। सरकार पर हमला बोल रहे हैं। वरिष्ठ नेता हैं। वैसे भी कर्नाटक में भाजपा का हिंदुत्व का कोई दांव नहीं चला। दिल्ली में भी नहीं चला था और हिमाचल में भी फेल हो गया था। फिर भी चुनौती बड़ी है।
क्या है कांग्रेस पार्टी की बड़ी चुनौती?
बड़ी मुश्किल से कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार सधे हैं। यही मुश्किल 2018 में आई थी, जब सचिन पायलट सधे थे। अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया मान गए थे और सचिन पायलट को भी मनाया गया था। कमलनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। बाद में सिंधिया बागी हो गए। सचिन पायलट और अशोक गहलोत की कब तक बनेगी कहा नहीं जा सकता। सूत्र बताते हैं कि 29 मई को 4 घंटे से अधिक की मैराथन बैठक और पिछले 15 दिन की भरसक कोशिश और तीन बार से अधिक बैठक और कार्यक्रम बदलने के बाद गहलोत और पायलट एक लाइन पर आए हैं। लेकिन जयपुर पहुंचने संसद के मानसून सत्र तक क्या होगा अभी कहना मुश्किल है। पार्टी के अंदरखाने में यही बड़ी चुनौती है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में कश्मीर से कन्याकुमारी तक साथ रहने वाले सूत्र का कहना है कि उन्होंने तब से आज तक पार्टी के सभी विरोधी गुटों को केवल एक साथ आने, तालमेल बनाने की ही नसीहत दी है। सूत्र का कहना है कि कर्नाटक में इसी मंत्र ने जीत दिलाई है। इसलिए पार्टी के शीर्ष नेता केवल मुख्य चुनौती पर ही फोकस कर रहे हैं।
यह चुनौती भी कोई छोटी नहीं
आम चुनाव 2024 के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 12 जून को विपक्ष के भावी साझा मंच का संकेत दे रहे हैं। पटना में उन्होंने विपक्ष के नेताओं का बड़ा मिलन आयोजित किया है। रैली भी की है। इसके लिए वह तमाम राज्यों के नेताओं से मिल चुके हैं। दिल्ली दौरा कर चुके हैं। 22 मई को मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी के सामने भी प्रस्ताव रख चुके हैं। कर्नाटक जीतने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी न केवल दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेताओं से मिलकर लौटी हैं, बल्कि वह पटना नए संदेश भी भेज रही हैं। राजनीति से सन्यास लेने की इच्छा जता चुके शरद पवार पिछले दो दशक में सबसे ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों का कहना है कि विपक्ष के नेताओं में आ रहा संयमित जोश साधना और तालमेल बनाना भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी बड़ा संकेत दे रहे हैं। अभी तक दो घोड़ो पर सवारी करने में माहिर अखिलेश यादव को भी लग रहा है कि कुछ करना होगा। इस पूरे विपक्षी दमखम में कांग्रेस को खुद को फिट करना है। पी. चिदंबरम जैसे नेता चाहते हैं कि 450 सीटों पर विपक्ष साझी एकता की सोचे।
'समय कम है, मंजिल दूर और रास्ता ऊबड़-खाबड़'
झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल के कांग्रेस के नेताओं से बात कीजिए, तो लगता है कि 2024 की चुनौती कोई आसान नहीं है। पार्टी के दिल्ली के एक नेता और पूर्व महासचिव कहते हैं कि समय ही कितना बचा। अभी पार्टी, पार्टी संगठन और तमाम मसले हल होने हैं। शीर्ष नेतृत्व को तेजी दिखानी चाहिए। मेरे विचार में समय ही कम नहीं है, बल्कि मंजिल दूर और रास्ता ऊबड़-खाबड़ है। यह हम सभी को पता है कि अभी राम मंदिर का भी उद्घाटन होना है।
मध्यप्रदेश के कांग्रेस के नेताओं में 2018 के दौर से ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है। कमलनाथ के पास ही पूरी जिम्मेदारी है। उम्रदराज दिग्विजय सिंह भी मानकर बैठे हैं कि कमलनाथ ही ठीक हैं। ग्वालियर, गुना, चंबल संभाग के नेता कहते हैं कि अब तो सिंधिया गुट के नेता भी कांग्रेस के साथ जुडऩे का सपना देखने लगे हैं। नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को थोड़ा सा कांग्रेस के बड़े नेता स्पेस दे दें, तो बहुत कुछ हो सकता है। हालांकि सूत्र का कहना है कि अब ज्योतिरादित्य को कांग्रेस में लाने के प्रयास में कोई फायदा नहीं है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के शासन और प्रबंधन ने अभी तक सबसे कम सवाल छोड़ा है।