वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :-चुनावी सर्वे करने वाली और इलेक्शन के दौरान होने वाले खर्चे को मॉनिटर करने वाली एक प्रमुख एजेंसी से जुड़े अनिमेष सिंह कहते हैं कि चुनाव के दौरान किस तरह से खर्चे होते हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। अब चुनावों से पहले बड़े नोटों को बंद करके रुपयों की कालाबाजारी पर अंकुश तो लगा ही है।
केंद्र सरकार ने दो हजार रुपये के नोट को बंद कर दिया है। इन रुपयों की 'नोटबंदी' तब की गई है जब बाजार में दो हजार रुपये के नोट एक तरह से दिखने बंद हो गए थे। इसे लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थे। दो हजार रुपये को बंद करने पर अब सियासी पार्टियों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। वहीं दो हजार रुपये के नोटों के बंद होने की टाइमिंग को सियासत के नजरिए से भी देखा जा रहा है।
सियासी जानकार दबी जुबान से इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि इसका असर आने वाले कांग्रेस शासित दो राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान और भाजपा शासित मध्य प्रदेश और बीआरसी शासित तेलंगाना के चुनाव में भी पड़ सकता है। इनकम टैक्स से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि चुनावों के दौरान पकड़ा जाने वाला कैश इस बात की ओर इशारा करता है कि इलेक्शन में किस तरीके से पैसों से चुनाव मैनेजमेंट होता है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से दो हजार रुपये के नोट बंद किए जाने को सियासी गलियारों में एक अलग नजरिए से देखा जा रहा है। सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि यह नोटबंदी तब हुई है जब अगले कुछ महीनों मे चार राज्यों में बड़े चुनाव होने हैं। देश में चुनावी सर्वे करने वाली और चुनाव के दौरान होने वाले खर्चे पर नजर रखने वाली एक प्रमुख एजेंसी से जुड़े अनिमेष सिंह कहते हैं कि चुनाव के दौरान किस तरह से खर्चे होते हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। यह बात अलग है कि चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही वह सभी खर्चे दिखाने होते हैं लेकिन यह भी सबको पता है कि एक चुनाव को लड़ने में जमीनी तौर पर कितना खर्चा आता है। इसके अलावा कहते हैं कि चुनाव में "फंड मैनेजमेंट" बहुत बड़ी प्रक्रिया होती है। ऐसे में बड़े नोटों के बंद होने से चुनावी फंड मैनेजमेंट पर भी असर पड़ेगा।
राजनीतिक विश्लेषक आरपी शुक्ला कहते हैं कि 2016 में हुई नोटबंदी के बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए थे। शुक्रवार को अब 2000 नोट बंद होने के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। उनका कहना है यह बात अलग है कि इसको कोई राजनीतिक पार्टी स्वीकार नहीं करेगी, लेकिन चुनाव के दौरान ऐसे ही नोटों से फंड मैनेजमेंट से सियासी सरगर्मियों को हवा तो मिलती है। नेशनल इकोनॉमिक रिसर्च सेंटर एंड डेवलपमेंट के अनमोल चतुर्वेदी कहते हैं यह चिंता का विषय तो था ही कि आखिर दो हजार रुपए के नोट अचानक बाजार से कहां गायब हो गए। चतुर्वेदी कहते हैं कि अब आने वाले चुनाव में इसका कितना असर पड़ेगा यह तो कहना थोड़ा मुश्किल है।
इनकम टैक्स से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि चुनाव के दौरान जब्त होने वाली नगदी इशारा करती है कि किस तरह से चुनावों में अनअकाउंटेड पैसे से चुनावी मैनेजमेंट किया जाता है। किसी भी राज्य में होने वाले चुनाव के दौरान कैश का पकड़ा जाना सामान्य प्रक्रिया हो गई है। वो कहते हैं कि कई बार तो लोग अपने दस्तावेजों को दिखाकर अपने पैसों को बचा सकते हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में यह रकम जब्त हो जाता है। चार्टर्ड अकाउंटेंट मनोज पांडे कहते हैं कि दो हजार के नोट जब बाजार में आए थे तो चर्चा इस बात को लेकर भी सबसे ज्यादा हो रही थी कि क्या इससे कालाबाजारी रुकेगी। उनका कहना है कि जिम्मेदार एजेंसियों ने इस बात को भली भांति समझा होगा कि आखिर बाजार से दो हजार के नोट अचानक क्यों गायब हो गए। शायद यही वजह रही कि इन नोटों को बंद कर दिया गया। मनोज कहते हैं कि जिन लोगों ने इन बड़े नोटों को रोक कर अपने पास 'अनअकाउंटेड अमाउंट' के तौर पर रखा होगा उनके लिए तो निश्चित तौर पर परेशानियां बढ़ने वाली है। उनका कहना है कि ब्लैक मनी के तौर पर इस्तेमाल होने वाले इन नोटों का असर अलग-अलग जगहों पर तो निश्चित तौर पर दिखेगा।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने इस नोट बंदी को भारतीय जनता पार्टी की सरकार की बड़ी नाकामी बताया। उन्होंने ट्वीट कर नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि कि उनकी खासियत यही है वह सोचते बाद में है और करते पहले हैं। जयराम रमेश आगे कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इसी नजरिए की वजह से आठ नवंबर 2016 को लागू किया गया तुगलकी फरमान फेल हो गया। इसके साथ ही दो हजार रुपये के नोट को अब चलन से बाहर किया जा रहा है।
वो कहते हैं कि यह फैसला ही गलत था। उनका कहना है कि नोटबंदी जैसे बड़े फैसले से देश के ना सिर्फ अर्थव्यवस्था बिगड़ी बल्कि देश के लोगों को महीनों लाइन में लगना पड़ा था। उत्तर प्रदेश कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता सुरेंद्र राजपूत कहते हैं कि दो हजार रुपये का नोट केंद्र सरकार ने तब बंद किया है जब कर्नाटक का चुनाव हार गए। वह कहते हैं यह फैसला पहले भी गलत था। आखिरकार इस नोट को बंद करके प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया कि उनका फैसला गलत था और गलत फैसले को देर सवेर वापस तो लेना ही पड़ता है।