वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-सम्मेलन में इस बात को लेकर चर्चा की गई कि देश के डिजिटल ढांचे के सामने जो चुनौतियां हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। देश में डिजिटल सिस्टम ने जिस तेजी से रफ्तार पकड़ी है, उसके जोखिम को कम करने के लिए उतना काम नहीं हो सका है
57वें पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षक सम्मेलन के दूसरे दिन यानी शनिवार को कई अहम मुद्दों पर चर्चा की गई। मौजूदा समय में 'डिजिटल' तकनीक में साइबर सेंध, एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। सरकारी और प्राइवेट संस्थान, तेजी से डिजिटल तकनीक की राह को अपना रहे हैं, लेकिन उन्हें साइबर अटैक का जोखिम भी उठाना पड़ रहा है। साइबर सेंध का खतरा, जितना प्राइवेट कंपनियों को है, उतना ही सरकारी संस्थानों को भी है। इसके अलावा, डिजिटल पब्लिक गुड्स के अंतर्गत आने वाली सेवाओं के लिए भी यह एक बड़ा खतरा है। देश का सुरक्षा सिस्टम, स्वास्थ्य, शिक्षा, रिसर्च एवं दूसरे सार्वजनिक संस्थान, साइबर अटैक से बच नहीं पा रहे हैं। इस सम्मेलन में विभिन्न राज्यों के पुलिस अफसरों और केंद्रीय सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों के प्रमुखों ने डिजिटल तकनीक को एंड-टू-एंड सुरक्षा मुहैया कराने पर विचार विमर्श किया है। इसके लिए केंद्रीय एजेंसियां एवं राज्यों की पुलिस, संयुक्त रूप से एक प्रभावी मेकेनिज्म तैयार करेंगी।
सुरक्षा के विभिन्न स्तरों पर करना होगा काम
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को नई दिल्ली में तीन दिवसीय पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षक सम्मेलन का उद्घाटन किया था। सम्मेलन में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षक तथा सीएपीएफ के प्रमुख भाग ले रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी भी इस सम्मेलन में भाग लेंगे। यह सम्मेलन हाइब्रिड मोड में आयोजित किया जा रहा है। विभिन्न स्तरों के लगभग 600 अधिकारी वर्चुअल तरीके से देश के अलग-अलग राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से इस सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, भारत तेजी से पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने की राह पर अग्रसर है। ऐसे में सुरक्षा के विभिन्न स्तरों पर भी गति से काम करने की जरुरत है। इसके लिए पुलिस के क्षमता निर्माण को और ज्यादा विकसित करना होगा। देश के क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर ढांचों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर खास ध्यान देना पड़ेगा।
देश में संपूर्ण डिजिटल साक्षरता का अभाव
सूत्रों के अनुसार, सम्मेलन में इस बात को लेकर चर्चा की गई कि देश के डिजिटल ढांचे के सामने जो चुनौतियां हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। डिजिटल पब्लिक गुड्स के साथ निजता की समस्या भी देखी जा रही है। डाटा सिक्योरिटी को लेकर मौजूदा कानूनों में कई तरह के बदलाव संभव हैं। देश में डिजिटल सिस्टम ने जिस तेजी से रफ्तार पकड़ी है, उसके जोखिम को कम करने के लिए उतना काम नहीं हो सका है। देश में संपूर्ण डिजिटल साक्षरता का अभाव है। इस बीच आतंकवादी, गैर कानूनी कार्यों में लगे संगठन, हवाला कारोबारी, चरमपंथी समूह और तोड़फोड़ की गतिविधियों में शामिल कई दूसरे ग्रुप भी डिजिटल की राह पर हैं। गत वर्ष केंद्रीय मंत्रालयों की वेबसाइट और एम्स पर हुए साइबर अटैक, कमजोर सुरक्षा चक्र का ही परिणाम था। डिजिटल सिस्टम में डाटा को एंड-टू-एंड सुरक्षा प्रदान करना, अभी तक संभव नहीं हो पाया है। साइबर अटैक करने वाले सरकार और निजी संस्थानों की बैकअप फाइलों तक जा पहुंचे हैं। डाटाबेस में सेंध लग रही है।
ग्राउंड स्तर पर तकनीक और एक्स्पर्ट की कमी
सभी राज्यों में डिजिटल सिस्टम तो शुररू हो गया है, मगर वहां साइबर अटैक को रोकने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। केंद्र ने इसके लिए कई स्तर पर इंतजाम किए हैं, मगर ग्राउंड स्तर पर तकनीक और एक्सपर्ट कर्मियों का अभाव साफ नजर आता है। केंद्र सरकार, क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम कर रही है। पिछले साल हुए बड़े साइबर अटैक के बाद इस तरफ ज्यादा ध्यान दिया गया है। वजह, अगर क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत स्थिति में नहीं है, तो उसका असर राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी डिजिटल पब्लिक गुड्स को सुरक्षित रखने के लिए अलग नजरिया अपनाने की जरूरत पर बल दिया है। उन्होंने कहा, नार्को-तस्करी, हवाला तथा अर्बन पुलिसिंग जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र एवं राज्यों के बीच और बेहतर समन्वय की आवश्यकता है। केंद्र सरकार ने साइबर अटैक के मामलों से निपटने के लिए भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम का गठन किया है। डीजी आईजी सम्मेलन में इस बात पर फोकस किया गया है, सभी राज्यों की पुलिस को साइबर अपराधों से निपटने और समय रहते कार्रवाई के लिए प्रशिक्षण दिया जाए।
व्यापक मॉनिटरिंग फ्रेमवर्क स्थापित करने पर जोर
सोशल मीडिया का दुरुपयोग, आतंकवाद, साइबर अटैक, ड्रोन के जरिए हथियार व ड्रग की सप्लाई, काउंटर-टेररिज्म फाइनेंसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और गैर-कानूनी कार्यों के लिए वर्चुअल एसेट्स का इस्तेमाल, आदि विषयों पर गहन मंथन किया गया। इन पर रोक लगाने के लिए व्यापक मॉनिटरिंग फ्रेमवर्क स्थापित करने को लेकर बातचीत हुई है। टेररिज्म, नारकोटिक्स और आर्थिक अपराध पर कैसे रोकथाम लगे, कॉन्फ्रेंस में चर्चा की गई है। कई संगठन, अपनी सामाजिक गतिविधियों की आड़ में युवाओं को रेडिकलाइज कर रहे हैं। उन्हें गैर-कानूनी राह जैसे आतंक की ओर ले जा रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में केंद्रीय एजेंसी ने पीएफआई पर बड़ी चोट की है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस संगठन पर बैन लगा दिया है। जम्मू कश्मीर, उत्तर पूर्व, पंजाब व दूसरे सीमावर्ती राज्यों में आतंकियों एवं नारकोटिक्स सिंडिकेट के बीच गठजोड़ दिखाई देने लगा है। टेरर फाइनेंसिंग के लिए क्रिप्टो करेंसी तथा हवाला का इस्तेमाल शुरू हो गया है। इसके सभी चैनलों की पहचान कर उन्हें खत्म करना, किसी चुनौती से कम नहीं है। अपनी पहचान छिपाने के लिए और रेडिकल मटेरियल को फैलाने के लिए डार्क-नेट का इस्तेमाल किया जा रहा ह
। पुलिस को, डार्क-नेट पर चलने वाली इन गतिविधियों के पैटर्न को समझने और उस पर कैसे अंकुश लगाया जाए, इस पर चर्चा की गई है। इसके लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस को तकनीकी उपकरण मुहैया कराए जाएंगे।