वॉयस ऑफ़ ए टू जेड न्यूज़:-आर्टिकल 239AA में दिल्ली सरकार के विधायी और कार्यकारी शक्तियों के बारे में बताया गया। खास बात है कि इसमें विशेष रूप से कहा गया है कि भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था केंद्र के हिस्से में ही रहेंगी।
केंद्र बनाम दिल्ली सरकार का मुद्दा एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में उठा है। इस बार का मुद्दा राजधानी में नौकरशाहों पर नियंत्रण का है, जिसे लेकर शीर्ष न्यायालय बुधवार को सुनवाई करेगा। इससे पहले 6 मई को मामले में सुनवाई हुई थी। उस दौरान केस को बड़ी बेंच को सौंपने का फैसला किया गया था। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा ने तब कहा था कि संविधान बेंच दिल्ली में 'सेवाओं' के मुद्दों पर ही फैसला करेगी। बुधवार को जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूण, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा फैसला करेंगे। दरअसल, आर्टिकल 239AA में दिल्ली सरकार के विधायी और कार्यकारी शक्तियों के बारे में बताया गया। खास बात है कि इसमें विशेष रूप से कहा गया है कि भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था केंद्र के हिस्से में ही रहेंगी।
केंद्र का क्या कहना है
केंद्र ने तीन जजों की बेंच के सामने संविधान बेंच की तरफ से आम आदमी पार्टी सरकार के लिए सीमाएं तय करने की बात कही गई थी। केंद्र के अनुसार, आर्टिकल 239AA के सब सेक्शन 3 में खासतौर से शामिल तीन सबजेक्ट्स से ज्यादा भी हो सकते हैं, जिन पर दिल्ली सरकार कानून नहीं बना सकती। केंद्र का कहना था कि एक अन्य पांच जजों की बेंच की तरफ से इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए।
दिल्ली सरकार क्या कहती है
इधर, दिल्ली सरकार ने केंद्र की बात का विरोध किया था। साथ ही दिल्ली सरकार ने इसे लेकर जल्दी फैसले सुनाने की अपील की थी कि उन्हें राजधानी में नौकरशाहों के तबादले या नियुक्ति का अधिकार है या नहीं। साल 2018 में संविधान बेंच ने कहा था कि NCT के संबंध में केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्तियां भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था तक सीमित हैं। जबकि, केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने अप्रैल में कहा था कि 2018 के फैसले में यह नहीं कहा गया है कि दिल्ली सरकार को इन तीन बातों के अलावा अन्य पर कानून बनाने की शक्तियां प्राप्त हैं। वहीं, आप सरकार का पक्ष रख रहे एड्वोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र की बातों को मान लेने से दिल्ली विधानसभा का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।