वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-
प्रयागराज- इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेंशन के लिए 24 साल लड़ी गई कानूनी लड़ाई मुकाम पा गई है। पति 12 वर्ष ने लड़ाई लड़ी और लगभग इतने ही बरस पत्नी ने। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने मेरठ निवासी याची माया को एकमुश्त 7.50 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश विभाग को दिया है।
कोर्ट ने कहा, पेंशन पाने के अधिकार के बावजूद याची के पति को गलत शासनादेश के आधार पर इससे इनकार कर दिया गया। वह चार दिसंबर 1982 के शासनादेश से पेंशन का हकदार था, इस तथ्य की उपेक्षा की गई। उसे 1973 के शासनादेश के आधार पर पेंशन पाने का अपात्र घोषित कर दिया गया, जबकि उक्त शासनादेश उसके मामले में लागू नहीं होता था।
कोर्ट ने पेंशन के लिए न्यूनतम योग्यता न होने के आधार पर पेंशन का हकदार नहीं मानने संबंधी पांच मार्च 2008 का विभागीय आदेश रद कर दिया। कहा कि पेंशन या नोशनल (सांकेतिक) पेंशन दी जा सकती है, लेकिन अब मामला पारिवारिक पेंशन का है।
तने अंतराल के बाद गणना कठिन है, इसलिए याची को विशेष स्थिति के कारण सात लाख 50 हजार रुपये की एकमुश्त राशि का भुगतान किया जाए। मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार याची के पति सालगराम की नियुक्ति करमालीपुर गढ़ी, बागपत मेरठ स्थित प्राइमरी स्कूल में 19 नवंबर 1963 को बतौर अप्रशिक्षित अध्यापक हुई। वह 30 जून 1991 को सेवानिवृत्त हुए।
याची का दावा था कि उनकी सेवा पहली अक्टूबर 1957 से शुरू हुई। कुल 34 साल की सेवा की, किंतु पेंशन नहीं मिली। 1999 में याचिका दायर की गई तो हाई कोर्ट ने 25 जनवरी 2000 को बीएसए को प्रकरण तय करने का आदेश दिया।
बीएसए ने कहा, याची को प्रशिक्षण से छूट नहीं थी। 1973 के शासनादेश के आधार पर पेंशन के लिए 15 साल की सेवा जरूरी है और याची की सेवा नौ साल आठ माह छह दिन है। इसे चुनौती दी गई। वर्ष 2000 में दायर रिट पर जनवरी 2008 को निर्णय हुआ।
पांच मार्च 2008 को बीएसए ने फिर अपने आदेश में याची को पेंशन का हकदार नहीं माना। इस पर अवमानना याचिका दायर की गई, लेकिन निर्णय से पहले ही 19 अप्रैल 2011 को सालगराम का निधन हो गया।
वर्ष 2013 में माया ने पति को पेंशन व उसे पारिवारिक पेंशन का भुगतान करने की मांग में याचिका दायर की और कहा कि 1982 के शासनादेश से पेंशन के लिए 10 साल की सेवा पर्याप्त मानी गई है। बीएसए ने गलत शासनादेश को आधार बना पेंशन देने से इनकार किया है, यह आदेश रद किया जाए।