वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-मामला कानपुर देहात का है। 21 जुलाई 2013 को रानियां के राही पर्यटक आवास में अमरौधा पीएचसी के तत्कालीन प्रभारी डॉ. सतीश चंद्रा का गुप्तांग काटकर हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद गुप्तांग को उनकी पत्नी के नाम कुरियर कर दिया गया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 साल पहले चिकित्सक का चिकित्सक की हत्या के बाद उसके निजी अंग को काट कर पत्नी को कुरियर करने वाली महिला को जमानत दे दी है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति नलिन श्रीवास्तव की खंडपीठ ने महिला की ओर से दाखिल जमानत याचिका पर दिया। निचली अदालत के आदेश पर वह उम्रकैद की सजा काट रही है।
मामला कानपुर देहात का है। 21 जुलाई 2013 को रानियां के राही पर्यटक आवास में अमरौधा पीएचसी के तत्कालीन प्रभारी डॉ. सतीश चंद्रा का गुप्तांग काट कर हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद गुप्तांग को उनकी पत्नी के नाम कुरियर कर दिया गया था।
महिला के साथ चिकित्सक होटल में पहुंचे थे। शाम को उनकी लाश होटल के कमरे में पड़ी मिली थी। पुलिस ने लाश देखी तो उनका निजी अंग काटा हुआ था, लेकिन कमरे में कमरे में उसकी बरामदगी नहीं हो सकी। आश्चर्य तब हुआ जब डॉक्टर के खून से ही दीवार पर लिखा पाया गया कि- जब मनुष्य प्रकृति से खिलवाड़ करता है तो प्रकृति अपना बदला स्वयं ले लेती है...। पुलिस के लिए यह पंक्तियां किसी चुनौती से कम नहीं थीं।
महिला की निशानदेही पर बरामद हुआ था सर्जिकल ब्लेड
छानबीन के बाद पुलिस ने कानपुर के गोविंद नगर में रहने वाली महिला को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में उसने जब घटना का खुलासा किया, तब सबके होश उड़ गए। महिला ने बताया कि शराब का शौकीन चिकित्सक उसके साथ अप्राकृतिक सेक्स करता था। उसके बाद चिकित्सक की नजर उसकी बहन पर भी थी। इसलिए उसने उसका निजी अंग सर्जिकल ब्लेड से काट दिया। इसके बाद उसके निजी अंग को एक डिब्बे में पैक कर उसकी पत्नी के नाम कुरियर कर दिया। छानबीन के दौरान ही वह कुरियर चिकित्सक की बीवी को मिला, डिब्बे को खोला तो उसमें कटा हुआ निजी अंग मिला।
इसके पहले खारिज हो चुकी है जमानत
पुलिस ने महिला की निशानदेही पर कत्ल में प्रयुक्त ब्लेड बरामद किया और उसे जेल भेज दिया। निचली अदालत ने विचारण के दौरान उसे जमानत नहीं दी। लगभग तीन साल चले विचारण के बाद निचली अदालत ने आरोपी महिला को उम्रकैद की सजा सुना दी। सजा काटने के दौरान वह मानसिक समस्याओं की शिकार हो गई तो उसे माती से लखनऊ कारागार ट्रांसफर कर दिया गया।
वह लगभग 10 साल से जेल में है। उसने उम्रकैद की सजा के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। 2016 से अपील लंबित रहने के दौरान एक बार उसकी जमानत याचिका खारिज की जा चुकी है। दस साल की सजा काट लेने के बाद भी अपील का निस्तारण नहीं हो सका तो उसकी ओर से दूसरी जमानत याचिका पेश की गई। जिसे मुख्य न्यायधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति नलिन श्रीवास्तव की पीठ ने मंजूर कर ली।