वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :-अरिहा शाह जब सात महीने की थी तो जर्मनी की बाल कल्याण एजेंसी ने उसे हिरासत में ले लिया था। एजेंसी ने आरोप लगाया था कि उसके माता-पिता उसका उत्पीड़न किया है।
देश के उन्नीस दलों के 59 सांसदों ने जर्मनी के राजदूत को पत्र लिखा है। सांसदों ने उनसे एक भारतीय बच्ची की वापसी सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग की है। बच्ची को सितंबर 2021 में जर्मनी के अधिकारियों के द्वारा उसके माता-पिता से दूर ले जाया गया था।
अरिहा शाह जब सात महीने की थी तो जर्मनी की बाल कल्याण एजेंसी जुगेंडम ने उसे हिरासत में ले लिया था। एजेंसी ने आरोप लगाया था कि उसके माता-पिता उसका उत्पीड़न किया है।
इन सांसदों ने अपने पत्र में कहा, "हम आपके देश की किसी भी एजेंसी पर आक्षेप नहीं लगाते हैं और यह मानते हैं कि जो कुछ भी किया गया वह बच्चे के सर्वोत्तम हित में सोचा गया था। हम आपके देश में कानूनी प्रक्रियाओं का सम्मान करते हैं, लेकिन यह देखते हुए कि उक्त परिवार के किसी भी सदस्य के खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित नहीं है, बच्ची को घर वापस भेजने का समय आ गया है।" सांसदों ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर पत्र का समर्थन किया है। इनमें इनमें हेमा मालिनी (भाजपा), अधीर रंजन चौधरी (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (राकांपा), कनिमोझी करुणानिधि (द्रमुक), महुआ मोइत्रा (तृणमूल कांग्रेस), अगाथा संगमा (एनपीपी), हरसिमरत कौर बादल (शिअद), मेनका गांधी (भाजपा), प्रणीत कौर (कांग्रेस), शशि थरूर (कांग्रेस) और फारूक अब्दुल्ला (नेकां) शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि अरिहा के माता-पिता धरा और भावेश शाह इसलिए बर्लिन में थे, क्योंकि बच्ची के पिता वहां एक कंपनी में कार्यरत थे। परिवार को अब तक भारत वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन कुछ दुखद घटनाएं हुई। अरिहा को उसके माता पिता से इसलिए दूर ले जाया गया था, क्योंकि बच्चे को पेरिनियम (गुदा और अंडकोष या योनिमुख के बीच का भाग) में चोट लगी थी, जिसके लिए उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाल यौन शोषण के लिए उसके माता-पिता के खिलाफ एक जांच शुरू की गई थी। फरवरी 2022 में माता-पिता के खिलाफ किसी भी आरोप के बिना पुलिस केस को बंद कर दिया गया था।
पत्र में कहा गया है कि अस्पताल ने भी एक रिपोर्ट जारी कर यौन शोषण की संभावना से इनकार किया है। इसके बावजूद बच्ची को उसके माता-पिता को नहीं लौटाया गया और बाल कल्याण एजेंसी जुगेंडम ने जर्मनी की अदालतों में बच्चे की स्थायी हिरासत के लिए दबाव डाला। जुगेंडम का कहना है कि भारतीय माता-पिता अपने बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ हैं जो जर्मन फॉस्टर केयर में बेहतर होगी।
उन्होंने कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त मनोवैज्ञानिक द्वारा माता-पिता के मूल्यांकन के मामले में डेढ़ साल से अधिक का समय लगा है। उसे (बच्ची को) एक देखभालकर्ता से दूसरे में स्थानांतरित करने से बच्चे को गहरा और हानिकारक आघात होगा। माता-पिता को केवल पाक्षिक यात्राओं की अनुमति है। इन मुलाकातों के वीडियो दिल दहला देने वाले होते हैं और इनसे पता चलता है कि बच्ची के अपने माता-पिता के साथ गहरे संबंध हैं और जुदाई का दर्द क्या है।
पत्र में उन्होंने कहा, "एक और पहलू है। हमारे अपने सांस्कृतिक मानदंड हैं। बच्चा एक जैन परिवार से संबंधित है जो सख्त शाकाहारी हैं। बच्चे को एक विदेशी संस्कृति में ढाला जा है, उसे मांसाहारी भोजन खिलाया जा रहा है। यहां भारत में होने के नाते, आप बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि यह हमारे लिए कितना अस्वीकार्य है।"