वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :- पूर्व कार्यवाहक डीजीपी डीएस चौहान भी सेवानिवृत्त होने से पहले 35 दिन तक शूटरों को पकड़ने के लिए प्रयासरत रहे। हालिया डीजीपी राजकुमार विश्वकर्मा के नेतृत्व के 13 दिन बाद जब एसटीएफ को शूटरों को ढेर करने में कामयाबी मिली तो अधिकारियों के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई।
कानपुर के बिकरू कांड से ज्यादा प्रदेश पुलिस को प्रयागराज के उमेश पाल हत्याकांड ने परेशान किया। बीते 49 दिन से शूटरों की तलाश कर रहे प्रयागराज पुलिस कमिश्नरेट और एसटीएफ को खासी मशक्कत करनी पड़ी। पूर्व कार्यवाहक डीजीपी डीएस चौहान भी सेवानिवृत्त होने से पहले 35 दिन तक शूटरों को पकड़ने के लिए प्रयासरत रहे। हालिया डीजीपी राजकुमार विश्वकर्मा के नेतृत्व के 13 दिन बाद जब एसटीएफ को शूटरों को ढेर करने में कामयाबी मिली तो अधिकारियों के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई।
दरअसल, आरके विश्वकर्मा ने डीजीपी पद का दायित्व संभालने के बाद सबसे पहले उमेश पाल हत्याकांड की जांच की प्रगति जानी। वे रोजाना इस मामले की समीक्षा भी कर रहे थे। इस बीच पुलिस पर शूटरों को पकड़ने का दबाव बढ़ता जा रहा था। खासकर अतीक को पहली बार साबरमती जेल से प्रयागराज लाने के बाद उसे रोक पाने में विफलता से विभाग की खासी किरकिरी हो रही थी।
नए डीजीपी ने इस प्रकरण के सभी पहलुओं को जानने के बाद योजनाबद्ध तरीके से अतीक और उसके शूटरों पर कानून का शिकंजा कसने की योजना बनाई। यही वजह रही कि इस बार अतीक को लाने में न केवल पुलिस को कामयाबी मिली बल्कि, उसके प्रयागराज आते ही असद और गुलाम के एनकाउंटर से पूरे गिरोह में पुलिस का खौफ पसर गया।