वॉयस ऑफ़ ए टू जेड न्यूज़:-सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि मैनपुरी के सियासी दंगल में सैफई परिवार के चौथे सदस्य की एंट्री होने जा रही है। अब देखना है कि बीजेपी किसे मैदान में उतारती है।
सैफई परिवार के लिए तीन-तीन बार सियासी जमीन तैयार करने वाले मैनपुरी के लोकसभा उपचुनाव में इस बार बहू डिंपल यादव, मुलायम सिंह की विरासत को संभालने के लिए उतरी हैं। अब देखना है कि इस बार सैफई परिवार के इस गढ़ पर भगवा फहराने की कोशिश में जुटी बीजेपी किसे मैदान में उतारती है और अखिलेेश को घेरने के लिए क्या रणनीति अपनाती है।
बीते तीन दशक से सपा और सैफई परिवार के लिए मैनपुरी हमेशा ‘अलादीन का चिराग’ रहा है, जो मनमाफिक परिणाम देता है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से हुई शुरुआत अब उनके बेटे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तक पहुंच गई है। 90 के दशक से पहले यह सीट कांग्रेस की मानी जाती थी। लेकिन समाजवादी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद मैनपुरी और मुलायम एक-दूसरे के पर्याय माने जाने लगे। वर्ष 1996, 2004, 2009, 2014 और 2019 में कुल 5 बार मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से सांसद चुने गए। साल 2004 में जब मुलायम सिंह सूबे के सीएम बने तो उन्होंने मैनपुरी की विरासत धर्मेंद्र यादव को सौंपी। 2014 में मुलायम मैनपुरी के साथ आजमगढ़ से भी लोकसभा का चुनाव लड़े। दोनों जगह से जीतने के बाद उन्होंने मैनपुरी सीट को छोड़ने का फैसला किया मगर सियासी विरासत एक बार फिर अपने ही परिवार के तेजप्रताप को सौंपी।
मुलायम को हमेशा भरपूर स्नेह से नवाजा
परिवार से अलग मैनपुरी की सियासत को देखें तो 1989 और 1991 में मुलायम के वरदहस्त प्राप्त उदय प्रताप यहां से चुनाव लड़े। जबकि 1998 और 1999 में मुलायम सिंह ने परिवार से इतर बलराम सिंह यादव को चुनाव लड़ाया। लेकिन मैनपुरी ने हर प्रत्याशी में मुलायम को देखा और उसे अपने स्नेह से नवाजा। अब सैफई परिवार के चौथे सदस्य के रूप में उतरीं डिंपल यादव का नाम मैनपुरी के लिए नया भले ही नहीं है। लेकिन यहां उनका प्रवेश राजनैतिक दृष्टिकोण से पहले कभी नहीं हुई। हां, मैनपुरी से सटे कन्नौज और फिरोजाबाद से वे चुनाव जरूर लड़ी हैं।
अखिलेश के एक तीर से कई निशाने
डिंपल यादव का नाम सामने आने से पहले धर्मेंद्र यादव, तेजप्रताप के अलावा शिवपाल यादव के नामों को लेकर भी कयास लगाए जा रहे थे। पारिवारिक स्थितियों के मद्देनजर सपा के लिए मैनपुरी सीट के प्रत्याशी का चयन आसान नहीं था, मगर अखिलेश ने डिंपल को प्रत्याशी बनाकर एक तीर से कई निशाने लगाने के साथ, सभी किंतु-परंतु पर विराम लगाकर राजनीतिक विरासत पर परिवार के ही काबिज रहने की मंशा साफ कर दी है।
सपा का गढ़ करहल-किशनी!
मैनपुरी में कुल चार विधानसभा सीटें हैं। इसमें मैनपुरी, भोगांव, किशनी और करहल शामिल हैं। वर्तमान में मैनपुरी और भोगांव सीट भाजपा के पास तो करहल और किशनी पर सपा काबिज है। मैनपुरी की चार विधानसभा सीटों में से करहल सपा के लिए सबसे खास मानी जाती है। जातीय गणित के साथ ही सैफई से लगा होने के कारण करहल सपा का गढ़ है। मुलायम सिंह यादव भी यहां से विधानसभा चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। ऐसे में विधानसभा सीटों के हिसाब से गणित सपा के कितना अनुकूल रहेगा, इसका भी फैसला आगामी 5 दिसंबर को हो जाएगा। जिसके बाद सपा के गढ़ के रूप में मैनपुरी की स्थिति और साफ हो सकेगी।